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सत्यनिष्ठा है।"
प्रत्येक वस्तु को ठीक-ठीक समझने के लिए उसे विभिन्न दृष्टियो से देखो उसके अलग अलग पहलुओ से विचार करो, वस्तु के अनन्त गुणो तथा अनन्त विचार धाराओ का शुद्ध समन्वय करने की शक्ति स्याद्वाद मे है अनेकान्तवाद मे है ।
विभिन्न दर्शन शास्त्रो का समन्वय करने में समस्त दर्शन शास्त्र एक दूसरे के विरोधी न रह कर पूरक बन जाते है। उन सब के समन्वय मे ही अविकल सत्य के दर्शन हो सकते है। अतएव वस्तु तत्त्व की प्रतिष्ठा करने के लिए तथा व्यावहारिक जीवन मे साम्य लाने के लिए स्याद्वाद (अनेकान्त) की अत्यन्त उपयोगिता है । स्याद्वाद का यह सुनहरा सिद्धान्त भ० महावीर की सबसे बडी अनुपम देन है । महावीर श्री का चौथा कदम (साम्यवाद)
उस समय के धार्मिक क्षेत्र मे बहुत सी मूर्खताएँ प्रचलित थी। धर्म तत्त्व मे आध्यात्मिकता का कोई प्रमुख स्थान नही था। हर जगह वही मूर्खतापूर्ण व्यापार की प्रधानता थी। हरएक धर्म सकुचित घेरे मे पडा सिसकारियां ले रहा था। भ० महावीर ने इन सभी बुराईयो का घेरा तोडकर अत्यन्त वीरता और दृढता के साथ मुकावला किया। विभिन्न समाजो मे समता की स्थापना हेतु उन्होने मानव जाति को एकता का उपदेश दिया। उन्होने अपनी ओजस्वी वाणी मे कहा
"मनुष्य जातिरेकैव" अर्थात् मानव जाति एक ही है। उसको कई भागो में बाँटना निरी मूर्खता है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र आदि का जाति भेद विल्कुल काल्पनिक है । कर्म से ब्राह्माण होता है,