________________
१३३
महावीरश्री की इस प्रशान्त गभीर वाणी के सामने हिंसा कुटिल तर्क कुठित हो गए और स्वार्थ की निर्दय प्रवृत्तियाँ सदय हो गईं। इस प्रकार महावीरश्री ने न केवल बलिदान बद किये बल्कि मानव समाज को जीव दया का पाठ पढाया । देवदासी जैसी घृणित - प्रथा को जड़ से उखाड फेकने का सारा श्रेय इन्ही लोकोत्तर भगवान महावीर को है ।
म० महावीर और महात्मा बुद्ध
विहार प्रान्त के एक अन्य क्षत्रिय राजकुमार गौतम बुद्ध ने भी उस समय की वीभत्स हिसा को हटाने के लिए महावीरश्री का पदानुसरण किया । उन्होने भी अहिसा का प्रचार करने के लिए साधु जीवन स्वीकार किया था । गौतम बुद्ध भ० महावीर स्वामी के समकालीन तथा निकटवर्ती थे ।
1
महात्मा बुद्ध ने पहले भ० महावीर के समान दिगम्बर साधुओ की तरह खड़े रहकर हाथो मे भोजन करना, अपने हाथो से केशो का लुंचन करना आदि साधु-चर्या का आचरण किया । पीछे इन विधियो को कठिन जानकर छोड़ दिया । अपने शिष्यो के साथ वार्तालाप करते हुए म० बुद्ध ने भ० महावीर की सर्वज्ञता का जिक्र किया था । वे उन्हे एक अनुपम नेता के रूप मे मानते थे । ये बाते बुद्धचर्या आदि ग्रन्थो से प्रमाणित हैं । महात्मा बुद्ध ने अहिंसा का प्रचार तो प्रारम्भ किया परन्तु पीछे अपने अनुयायियो की सख्या विशाल रूप मे बढाने के लिए उस अहिंसाव्रत को ढीला कर दिया । अपने आप मरे हुए या अन्य के द्वारा मारे गये जीव का मास भक्षण कर लेने मे भी अहिंसा कायम रह सकती है - बतलाकर महात्मा बुद्ध ने अपने जीवन मे एक बडी भूल की । इसीलिये बौद्ध धर्मानुयायियो मे मास भक्षण की परम्परा बनी रही - जो कि अब तक चालू है ।