________________
--
--
श्रीगुणचंद 81 अह सेणियनारदा पुदुर
--
॥३३३॥
--
अह सेणियनरिंदो पुवुत्तनरयनिवडणायन्नण जायगाढसोगावेगो भणिउं पत्तो-भयवं! समग्गभुवणत्तयरक्खाव- श्रेणिकस्य रिचा बद्धलक्खे तुमंमि सामिसाले किं मए नरए गंतवं?, जेण
से पश्चात्तापः ८ प्रस्तावः
माविजिनतुह नाममेत्तसंकित्तणंपि नासइ दिणुभवं पावं । कमकमलपलोयणमवि विणिवारइ दुरियरासिपि ॥ १॥ तोक्तिच. एक्केणऽवि तुह चलणोवरिंमि खित्तेण नाह! कुसुमेण । चोजमिण रुंदाणिवि नरयदुवाराई रुझंति ॥२॥ एकोऽवि नमोकारो कीरंतो तुज्झ सामि! भत्तीए । जायइ हेऊ सग्गापवग्गसंवाससोक्खाणं ॥ ३ ॥ ता वाहिरोगसोगुब्भवाई दुखाई नाह! विलसति । जाव न सवणपुडेहिं पविसइ वयणामयं तुझ ॥ ४ ॥ ता कह णु नाह! तुह नाममंतसारकखरेहिं चिंतंतो । सेलुवुक्किन्नेहिवि होजा मे नरयदुहलाभो ? ॥५॥ दुग्गइगत्तभंतरपडंततेलोकएकसाहारे । नाहे तुमएवि ममं एवं विहवसणमावडियं ॥ ६॥ धी धी निरत्थयं मज्झ जीवियं मंदभग्गसिरमणिणो। एरिससामग्गीयवि जस्स इमा दुग्गई जाया ॥ ७ ॥
इय एवंविहअइगाढसोगविगलंतनयणसलिलेण । नरवइणा जयगुरुणो विन्नत्तं नरयभीएण ॥८॥ HI एवं च ससोगजंपिरं पुहईवई अवलोइऊण करुणाभरमंथरनयणेण भणियं जिणेण-भो देवाणुप्पिय! कीस संता
वसुबहसि ?, जइविय सम्मत्तलाभाओ पुवमेव निवद्धाऊत्ति नरए निवडिस्ससि तहावि लद्धं तुमए लहिअवं, जो है
-
ससस -
-
-
-