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________________ ४८ महा० अन्नह संगमयविमुकचककडपूयणाइजणिएहिं । मरणं हविज्ज तइयावि मज्झं तिक्खेहि दुक्खेहिं ॥ ३ ॥ जो पुणततत्तणरुहिरइसाराइओ विगारो मे । सो (निरु) वकमत्तणेणं सोऽवि न दोर्स समावहइ ॥ ३ ॥ सीओ भणियं विहु एवं तहावि जयनाह || तुम्हावयाए तप्पर सयलं ससुरासुरं भुवणं ॥ ४ सिढिलियसज्झायज्झाणदाणपामो क्खधम्मवावारो । चाउचन्नो संघोऽवि लहई नो निव्बुई कहवि ॥ ५ ॥ तापसियसु जयबंधव ! अम्हारिसहिययदाहसमणत्थं । उवइससु भेसह जेण होइ देहं निरोगं मे ॥ ६ ॥ एवं कहिए तयणुकंपा भगवा भणियं - जइ एवं ता इहेव मिंढयग्गामे नयरे रेवइए गाहावइणीए सभी बच्चाहि, ताए य ममनिमित्तं जं पुत्रं ओसहं उवक्खडियं तं परिहरिऊण इयरं अप्पणो निमित्तं निम्फाइथं आणेहिचि, इमं निसामिऊण हरिसवसपयट्टपुलयपडला उरसरीरो सीहो अणगारो समुट्ठिऊण भयवंतं वंदइ नमसर, तयणंतरं पडिग्गहं गहाय रेवईए गाहावइणीए गिहमुवागच्छइ, साऽवि रेवई तं अणगारं ईरियासमिइप्पमुहचरणगुणसंपन्नं समणधम्मं व पञ्चक्खं गिमि पविसमाणमवलोइऊण खिप्पामेव आसणाओ अन्सुटेर, सत्तट्ठ पयाई सम्मुहमवसप्पर, सविणयं बंदिऊण य एवं जंपर - संदिसह भंते ! किमागमणकारणं ?, सीहेण भणियं - जं तुमए वद्धमाणसामीं पहुच कयं तं मोत्तूण जं अत्तट्ठा निष्फाइयं ओसहं तं पणामेहित्ति, तीए भणियं भयवं ! को एवंविहदिवनाणी जो रहसि कर्यपि एवंविहं वइयरं परिजागर, सुणिणा कहियं -सयलभावाभावनिव्या सणस मत्य केवलाव लोयनिलयं भगवंतं वी
SR No.010405
Book TitleMahavira Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandrasuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size277 MB
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