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कुलगणसंघाणंपिय पडिणीया जे हवंति इह जीवा । विउलंपि तवं काउं ते किनिसिएषु जाति ॥ ४ ॥ पुणरवि गोयमसामी पुच्छइ भयवं! तओ सठाणाओ। चइउं कइहिं भवेहि पाविस्सइ मोक्लपुरवासं ॥५॥ जिणनाहेणं भणियं सुरतिरियनरेसु पंच वेलाओ । भमिऊण पत्तबोही लहिही निवाणयोक्खाई ॥६॥ ता भो देवाणुपिया! जमालिमुणिणो निसामिउं चरियं । धम्मगुरुप्पमुहाणं विणयपरा होजह सयाचि ॥ ७ ॥ इय सिक्खविउं मुणिणो समत्थजियलोयवच्छलो वीरो । विहरइ पडिवोहितो भवजणं परमकरुगाए ॥ ८॥ | विहरंतस्स य पहुणो एत्तो ससिसूरवरविमाणाणं । अवधारणअच्छरियं जह जायं तह निसामेह ॥९॥ a साएए नयरे सन्निहियपाडिहेरो सुरप्पिओ नाम जक्खो, सो य पइवरिसं चित्तिजइ महसयो यो पो
कीरह, सो य चित्तिो समागो चित्तगरं वाधाएइ, जइ न चित्तिजइ ता नयरे जणमारिं विउवइ, तन्मएका पसारा चित्तगरसेणी पलाइउमारद्धा, णरवइणा विचिंतियं-जइ इमे सवे पलाइस्संति ता अवरसमेस जक्खो अपिसिसी अम्ह वहाए भविस्सइत्ति परिभाविऊण ते चित्तकरा संकलियाबद्धा कया, सवेसिं नामाणि य पत्तए लिहिऊण पक्ष । छूढाणि, तओ वरिसे वरिसे जस्स नामपत्तयं नीहरइ सो चित्तकम्मं जक्खस्स करेइ, एवं कालो बचाया RH संवीनयरीए पत्थवो एगो चित्तयरदारगो चित्तविजातिक्खणत्यं तत्थागओ ठिओ व चित्तपरथरीए मंदिरे, माया तप्पुत्तेण सद्धिं तस्स मित्ती, एवं च तस्स अच्छंतस्स तंमि वरिसे समागओ थेरीसुयस्त वारगो, तओ थेरी बहुपयार