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कह वाविहु मम दुहिया एसा उच्छंग संगसंभूया । परहत्थगया धरिही नियजीयं विरहसंतत्ता ? ॥ ७ ॥ इय एवंविहसंकष्पकप्पणुष्पन्नतिच्चदुक्खाए । निव्भच्छियं व जीयं नीहरियं से उरो भेतुं ॥ ८ ॥ तीसे य अपत्तकालमरणं अवलोइऊण चिंतियं तेण सेवग पुरिसेण, अहो दुई मए भणियं-महिला होहित्ति, एसा हि महाणुभावा कस्सइ पुरिसोत्तमस्स भज्जा संभाविज्जर, अओ चिय मम दुवयणायन्नणेण संखुहियहियया गया, ता किमित्थ अइकं तत्थ सोयणेण ?, एवं कन्नगं इयाणिं न किंपि भणिस्सामि, मा एसावि मरिहिति । ताहे महुरवथहिं अणुअत्तमाणा आणीया कोसंवीं नयरिं, विकयनिमित्तं च उड्डिया रायमग्गे, अह धम्मकम्मसंजोएण तप्पएसजाइणा दिट्ठा सा घणावहसेट्ठिणा, चिंतियं चडणेण अहो एरिसाए आगिईए न होइ एसा सामन्नजणदुहिया, जओ अणलंकियावि जलहिवेलब वह किंपि अपुत्रं लावन्नं, किससरीरावि मयलछणलेहच पायडर कंतिपडलं, ता जुजइ एसा मम बहुदवदाणेण गिहित्तए, मा हीणजणहत्थगया पाविही वराई अणत्थपरंपरं, एयसंगोवणेण य जइ पुण इमीए सयणवग्गेण ममं समागमो होज्जत्ति कलिऊण जेत्तियं सो मोलं भणइ तत्तियं दाऊण गहिया, नीया सगिहे, पुच्छिया य-पुत्ति ! कस्स तं धूया ? को वा सयणवग्गो ?, तओ उत्तमरायकुलपसूयत्तणेण सयं निश्व| इयरं कहिउमपारयंती ठिया एसा मोणेणं, पच्छा सेट्ठिणा धूयत्ति पडिवन्ना, समप्पिया मूलाभिहाणाए सेडिणीए, संलत्ता य एसा जहा पिए! धूया इमा तुह मए दिन्ना, ता गोरवेण संरक्खेजासि, एवं च जहा निययघरे तहा
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