________________
श्रीगुणचंद महावीरच०
७ प्रस्तावः
॥ २३६ ॥
कामो? जो ममावि असुरराइणो सीसोवरि बट्टमाणो दिखाई भोगाई भुंजमाणो अणाउलं विलपत्ति, एवं संपे हित्ता सामाणियपरिसोववन्नए देवे संसयसएस आपुच्छणोचिए सदावित्ता भणिउं पत्रत्तो भो भो देवागुपिया ! को एस दुरप्पा मम सिरोवर बट्टइत्ति ?, ते य सिरसावत्तं करयलपरिग्यहिथं गत्थए अंजलि का विजपणं वद्धाविऊण य सविषयं जंपिउमारद्धा-भो भो देवा णुपिया ! एस सुरिंदो सोहम्माहिवई महप्पा महाजुई अपरिभविषसासणी सयमेव विहरइ । तओ तवयणसवणानंतरस गुप्पन्ना मरिसवियंमंतभिउडिविकरालवयणो मणिउं पवतोभो भो हा! किमेवं अरिकमा मम पुरोवि । कइवयसुरपरियरियं एवं तुम्हे पसंसेह ? ॥ १ ॥
ज उच्चट्ठा ठिओ किमेत्तिएणवि गुरुत्तणमिमस्स ? । न हु वरइ तरुसिरत्थो कवोडओ नीलकंठसिरिं ॥ २ ॥ अहवा तोलिजेते तुलाऍ वत्थुंमि जं हवइ सारं । तं हेइथिय ठायइ इयरं पुण पट्टई उचरिं ॥ ३ ॥ एतो य लहू एसो अरिट्ठवसएण पाविओ सग्गं । जह कोइ लहइ रज्जं मायंगकुलप्पसूओऽनि ॥ ४ ॥
यो सुचिरं इमिणा सूरविहीणे रणेच सुरलोए । काउरिसेण व सुरसुंदरीहिं सद्धिं युद्धं तुत्थं ॥ ५ ॥ संपइ पुण अवणिजइ इमस्स चिररूढदप्पमाहप्पं । दुट्ठा उबेहियवा न हुंति रोगव कुसलाणं ॥ ६ ॥ तत्थ - जो ववसायं न कुणइ सकमागयसामिभावपरितुट्टो । स सिरीएवि हु सुबइ सो काउरिसोत्ति कलिकणं ॥७॥ इय होउ अज सुरलोयसामिणो माणदलणमलिणत्तं । सहसचिव कीरंतं पयडं वलसालिणावि मए ॥ ८ ॥
- Se
चमरेन्द्रत्योत्पत्तिः सौधर्मेन्द्र प्रति कोषः
॥ २३६ ॥