________________
श्रीगुणचंद महावीरच० ६प्रस्ताव
Oceae
ॐ054-56
॥ २२०॥
-ॐ
-
ROSASSA
एख
| गावी वागरइ तओ पुत्तय! मा वहसु अद्धिई किंपि । अइधम्मववहारा बाहिरो वट्टए एसो ॥३॥ मातुः संग
मागोववच्छेण भणियमम्मे ! कहमेवं?, पुत्त! कित्तियं कहिमो ? । नियजणणीएवि समं जो वासं बंछइ अणजो ॥ ४ ॥
सोल्लाप ता वच्छ! सहसु सबं तं धन्नो एत्तिएण जं मुक्को । उज्झियनियमज्जाया किमकजं जं न कुवंति ? ॥५॥ तावचिय तत्तरई तावचिय धम्मकम्मपडिबंधो । लोयाववायभीरुत्तणं च तावेव विष्फुरइ ॥६॥ तावजवि न विणस्सइ लजा जणणी गुणाण सयलाणं। अह सावि कहवि नट्ठाता नट्ठा कुरालचेट्ठावि॥७॥ जुम्म। इय सुरहिं साभिप्पायवयणसंदोहमुलवेमाणिं वच्छस्स पुरो दर्दु सो सहसा संकिओ हियए, चिंतिउमारदो यअहो पढमं ताव इमंपि महअच्छरियं जं तिरिच्छजोणिया होऊण माणुसियाए भासाए सलवइ, तत्यवि नियमाया-12 भिगमलक्खणं दूसणं मे दंसेइ, कहमेवं संभवइ ?, कत्थ मम माया? कत्थ अहं ? कहं संवासो, सबं अयंतमघडत-15 मेयं, अहवा होयचमेत्थ कारणेणं, चित्तरूवाई विहिणो विलसियाई, संभवइ सबं, अओ पुच्छिस्सामि तं चेव | साविलयं उटाणवडियंतिभाविऊण गओ तीसे घरं, अन्मुढिओ अणाए दावियं आसणं पक्खालिया चरणा ठियाई खणंतरं अवरोप्परुलावेण, अह पत्थावमुवलब्भ पुच्छिया सा अणेण-भद्दे ! साहेसु कत्थ तुम्ह उप्पत्ती?, तीएJ२२० ॥ सहासं भणियं-जत्थ एत्तियजणस्स, तेण भणिय-अलाहि परिहासेण, अहं सकजं पुच्छामि, तीए भणियं-मुद्धो-18 ऽसि तुम, जेण