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श्रीगुणचंद महावीरच०
॥ १९७॥
Tamannma
दलीलाए आगच्छमाणो, दद्गुण य साहियं चोरवइणो, जहा-एगो नग्गसमणो एइ, तेण भणियं-न हरियवमत्थिति गोशालय एस न भाइ, अन्नहा कह एत्थ अमाणुसाए अडवीए पविसेजा?, अहवा एस कोइ दुरायारो अम्हाणं एवंविह- पृथग्भवनं वपडिवण्णो मण्णे परिभवं उप्पाएइ, ता एउ अक्खलियगईए जेण अवणेमो से दुविणयं, एवं च जपंताणं चारा समीवमागओ गोसालो, तओ तेहिं दूराओ चिय साहिलास-एहि माउलग! सागयं तुहत्ति भणिऊण गहिओ करण, उड्डाविओ पढ़ि, मरणभयविहुरेण य उड्डिया अणेणं, तो चोराहिवइणा पंचसयचोरसमेएण आरुहिऊण हा जहक्कमं वाहिओ सुचिरवेलं, छुहातण्हापरिस्समभिहओ जया कट्ठगयजीओ जाओ ताहे मोत्तूण जहाभिमयं ।। गया तकरा, गोसालोऽवि बाढं सुट्टियसरीरो मोग्गरपहारजजरिउच्च कुलिसताडिउध विगयवेषण्णो तरुसंडछायाए । सुहत्तमत्तं विगमिऊण सिसिरमारुएण उवलद्धचेयणो सोगं करेउमारद्धो, कहं ?
हा दुइ दुहु विहियं हियत्थिणा नबुद्धिणा उ मए । जं सो सामी मुक्को अचिंतमाहप्पपडिहत्थो ॥१॥ निहोसंमिवि नाहे कुवियप्पेहिं मए हयासेण । जाकिर कया अवण्णा सा संपइ निवडिया सीसे ॥ २॥
NI॥ १९७॥ तस्स पभावेण पुरा अणेगठाणेसु दुइसीलोऽवि । निबूढोऽहं संपइ तविरहे नत्थि मे जीयं ॥३॥ अहवा-सहसचिय सम्ममचिंतिऊण कीरति जाई कजाई । अप्पत्थभोयणं पिव ताई विरासे दुहावेति ॥ ४॥ मण्णे इमिणञ्चिय कइयवेण मं छलिउमिच्छइ कयंतो । कहमन्नहा कुबुद्धी हवेज एयारिसी मज्झ? ॥ ५॥
कारख
anuaHD Damanasaram