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श्रीगुणचंद जामि एयस्स सीसत्तणं, न कयाइ निष्फला हवइ रयणायरसेवा, एवं विगप्पमाणस्स भयवं पारिऊण पत्तो समेत बोबालमहावीरच० तंतुवायसालं, ठिओ काउस्सग्गेणं, गोसालोऽवि सामिणो अटुंगं निवडिऊण चलणेसु विन्नवेइ
| एरिसमाहप्पं तुह देवजय! नो भए पुरा नायं । कुसलोऽवि मुणइ नग्धं अहवा थवियाण रयणाणं ॥१॥ नियजणगचाओऽविहु वंछियसुहअत्थसाहगो जाओ। अणुकूले वा दइवे अनओऽवि नयत्तणमुवेइ ॥ २॥ हवउ बहुजंपिएणं पडिवजिस्सामि तुम्ह सीसत्तं । अब्भुवगमेसु सामिय! पत्तो एको तुमं सरणं ॥ ३॥ सामीवि इमं सुणित्तावि विहिपडिसेहे अकुणमाणो तुसिणिको ठिओ, इयरोऽवि निययाभिप्पारण पडिवच-PI सिस्सभाको भिक्खाए पाणवित्तिं काऊण भगवओ समीवं न मुयइ, अह बीयमासखमणपारणए आणंदनामस्स || गिहवइस्स घरे गोयरचरियाए पविट्ठो भयवं, पडिलाभिओ य खजगविहीए, तइए य मासखमणपारणए सुनंदस्सा मंदिरे सबकामगुणिएणति । एत्तो चउत्थमासखमणमुवसंपबित्ताणं विहरइ, गोसालोऽवि बहुदिवससेवासंभाविय ।।
पणयभावो कत्तियपुन्निमादिवसे संपत्ते पुच्छइ-भयवं! एरिसियंमि वारिसियमहूसवे किमहमज भत्तं लभिस्सागि ?,5 Kा एत्यंतरे जिणवरतणुसंलीणेण भणियं सिद्धत्यवंतरेण-भद्द! अज तुमं पाविहिसि अंबिलेण समं कोहवरं, कूड-1 ॥ १८ ॥
स्वगं च दक्खिणाएत्ति, सो एवं निसामिऊण सूरुग्गमाए आरम्भ सबायरेण उच्चावएसु गिहेसु परिममिउमारद्धो, जत्थ जत्थ वचइ तत्थ तत्थ आरनालकल्लवियं कोदवकूरमेव लन्मइ, अह जायंमि अवरण्हसमए छुहा-11
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