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________________ ५ प्रस्तावःजा श्रीगुणचंद इयरजणा दुधिणयं जं नो दसति तं किमच्छरियं ? । तासि महावलाणं संकइ कुविओ कयंतोऽवि॥ ४ ॥ चंद्रलेखामहावीरच० सुरखयरजक्खरखसमडप्फरप्फंसणावि नूण जरा । निचावट्ठियजोवणगुणाण जासिं न संकमइ ॥५॥ चिरदूरकालवोलीणभूवईणं समग्गचरियाई । अज्जवि जाओ पयडंति सेललिहियप्पसत्थिव ॥६॥ ॥१६३॥ इय तारिसपयडपभावजोगिणीचकवालकलियस्स । नयरस्स तस्स भण केण बनणा तीरए काउं? ॥७॥ तत्थ य अहं चंदलेहाभिहाणा जोगिणी परिवसामि, एसावि विजासिद्धसमीववत्तिणी मम जेट्ठा भइणी पसा-81 हियपवरविजा अचंतदरिसणिजा जोगिणीपीढस्स चउत्थट्ठाणपूयणिजा चंदकंतानामा, गोभदेण भणियं-भइणि ! को एस विजासिद्धो ?, किनामो?, कहं वा एरिसमाहप्पो ?, किं वा एस तुह जेट्ठभइणीए एवं उवचरइत्ति, कहेसु । दावाढं कोऊहलाऊलं मे हिययं, चंदलेहाए भणियं-कहेमि, एसो हि कामरूपाभिहाणजोगिणीपरिवेढियस्त डमरसी-1 हस्स पुत्तो ईसाणचंदो नाम, एएण य पुरा अणेगप्पयाराओ साहिऊण विजाओ अखलियपसरं सथलकाभियसिदि। समीहमाणेण कच्चाइणीए भगवईए पुरओ को अट्ठोत्तरविल्ललक्खेण होमो, तित्तियमित्तेणवि जावन परितद्वारा भगवई ताव आकहिऊण खग्गधेणुं समारद्धो नियकंधरं छिंदिउं, नियजीवियनिरवेक्खो, कंठद्धं जा न छिंदए एसो । ताव सहसत्ति कत्तोवि आगया देवि रुदाणी ॥१॥ अहह महाकट्टमिमं कीस तुम पुत्त! ववसिओ भीम ? । इय जंपिरीए तीए कराओ छुरिया लहुं हरिया ॥२॥ Jaor City
SR No.010405
Book TitleMahavira Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandrasuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size277 MB
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