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सौधमेन्द्रा गमन.
४प्रस्ताव
श्रीगुणचंद | इय आणत्तियमायन्निऊण परिमुक्सेसवावारा । मुणियजिणनाहमज्जणमहूसवा हरिसिया तियसा ॥९॥
तो मजणपोक्खरिणीए अंति, बहुविहजलेण मजणु करति । कप्पूरमिस्सचंदणरसेण, आलिंपहि देहु सुबंधुरेण॥१॥
अइकोमलनिम्मलदूसजुअल, परिहंति वियंभियकंतिपडल । अह कंठपइट्ठियलट्ठहार, दूरझियकामुयजणवियार ॥२॥ ॥ ११८॥ अइसुरहिकुसुमनिम्मवियदाम, नवपारियायमंजरिसणाम । बंधंति सुगंधसमिद्ध सीसि, तक्खणकयकुंचिरचारुकेसि ३
मणिमउडकिरणविच्छुरियगयण, नियरूपमडप्फरहसियमयण । वरकडयतुडियभूसियसरीर, तणुकंतिपसरपरिभूयसूर ॥ ४॥ किवि मगरमरालयसन्निसन्न, किवि हरिणवसहसिहिप्पवन्न । आरुहवि केवि कुंजरि महंति, केवि तुंगतुरए वेगे वयंति ॥५॥ चीणंसुयचिंधसहस्सरम्म , अवलोयणिमेत्तह दिनसम्म । आरुहवि चलिय किवि वरविमाणि, किंकिणिरवमुहरि महप्पमाणि ॥६॥ सहुलसरहहरिपट्टि चडिय, किवि पट्ठियवेगेऽन्नोन्न घडिय।
इय सुरसमूहह सबै बलेण, सुरवइ समीवमागय जवेण ॥ ७॥ एत्यंतरे खंभसहस्ससंनिविठं फलिहमणिघडियसालभंजियाभिरामदारदेसं अणेगलंवतमुत्ताहलमालं पवरवइरवे
॥१८॥