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________________ तय किया कि असे देहरादून कन्या गुरुकुलमे भेज दें। पूज्य बाको वहाँ अत्सवके निमित्त जाना ही था। मुझे भी अन्होंने बुलाया था। हम चन्दनको साथ ले गये। वहाँके लोगोंने असे हिन्दी पढ़ानेका प्रबन्ध किया और बदलेमे अससे पानेका काम भी लिया। वह बोस्टन विश्वविद्यालयकी सोगियॉलाजी (समाजशास्त्र) मे अम० अ० थी। जितनेमे बापूका राजकोटका सत्याग्रह शुरू हुआ । चन्दन काठियावाड़की लड़की ठहरी । अससे कैसे रहा जा सकता था। वह सत्याग्रहमें गरीक होनेके लिओ देहरादूनसे राजकोट गयी। मितनेमें समझौता होकर सत्याग्रह स्थगित हो गया और बापू वर्धा आ गये । चन्दन राजकोटमे कुछ बीमार हो गयी। वर्धा चन्दनका पत्र आया कि मैं बीमार हूँ। अस दिन बापू वर्धासे वम्बी जा रहे थे । मैं बापूको पहुँचाने स्टेशन पर गया था। मैंने चन्दनके बीमार होनेकी बात सुनायी । बापू तफसील पूछने लगे । मैंने चन्दनका पत्र ही सुनके हाथमें दे दिया । स्टेशन पर भीड़ होनेके कारण वे असे पढ़ न सके, साथ ही ले गये ।। दूसरे दिन सुबह बम्बी पहुँचनेके पहले ही उन्होंने चन्दनको अक तार भेजा जिसमे क्या दवा करनी चाहिये, किन बातोंकी संभाल रखनी चाहिये, सब कुछ लिखा था । और तुरन्त अहमदाबाद जाकर अमुक वैद्यकी दवा लेनेकी सूचना भी की थी। तार खासा १२-१५ रुपयोंका था । असे काममे चाहे जितना खर्च हो बापूको सकोच नहीं रहता है। और जहाँ कंजूसी करने बैठते हैं। वहाँ तो पानी पानीकी काट कसर करते हैं। ४८ अक समय वापू दार्जिलिंगमे थे । बंगालमें प्रान्तीय परिषद् होनेवाली थी । असमे चित्तरंजन दासका किसी पक्षसे बड़ा विरोध होनेवाला था। अन्होंने वापूको भुपस्थित रहनेके लिो कहा था। बापूने स्वीकार भी किया था। निश्चित समय पर बापू दार्जिलिंगसे निकलनेके लिो प्रस्तुत हुमे । (बापूकी गफलत नहीं थी, मोटरकी कोजी गड़बड़ी हुी होगी या क्या,
SR No.010402
Book TitleMahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaktavarlal Mahatma
PublisherVaktavarlal Mahatma
Publication Year1945
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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