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________________ ४५ आश्रमके प्रारम्भके दिनोंमें आसपास हमें अच्छा दूध नहीं मिलता था। अिसलिमे हमने अपना प्रबन्ध कर लिया, अच्छी अच्छी गायें और भैसें रख लीं। कुछ दिनों के बाद बापूने हमे समझाया कि हमें गोरक्षा करनी है । भैसको रखकर हम गायको नहीं बचा सकते । दोनोंको आश्रय देकर. हम दोनोंका नाश कर रहे हैं । गायकी सबसे बड़ी प्रतिस्पर्धी है भैस । बैल तो अपनी सेवाके बल पर बच जाता है, और भैस अपने दूध, घीकी अधिकताके बल पर । रही गाय और भैसके पाड़े। सो गाय कतल की जाती है और भैसके पाड़े बचपनमें ही मार डाले जाते हैं । ___ • नतीजा यह हुआ कि आश्रमसे सब मैसे हटायी गयीं । केवल गोशाला ही रही। अक दिन गायका अक बछड़ा बीमार हुआ। हम लोगोंने असकी दवाके लिअ जितनी कोशिशे हो सकती थीं की । देहातोंसे पशुरोगोंके जानकार आये । व्हेटरनरी डॉक्टर आये । जितना हो सकता था सब कुछ किया । किन्तु बछड़ा ठीक नहीं हुआ। बछड़ेके अन्तिम कष्ट देखकर बापूने हम लोगोंके सामने प्रस्ताव रखा कि अिस मूक जानवरको जिस तरह पीड़ा सहन करते रखना घातकता है । असे मृत्युका विश्राम ही देना चाहिये । अिस पर बड़ी चर्चा चली । श्री वल्लभभाभी अहमदाबादसे आये। कहने लगे -'बछड़ा तो दो-तीन दिनमें आप ही मर जायेगा, किन्तु असे आप मार डालेंगे तो नाहक झगडा मोल लेंगे। देश भरके हिन्दू समाजमें खलबली मचेगी। अभी फंड अिकट्ठा करने बम्बभी जा रहे हैं। वहाँ हमें कोसी कौड़ी भी नहीं देगा । हमारा बहुतसा काम रुक जायेगा।' बापूने सब कुछ ध्यानसे सुना और अपनी कठिनाभी पेश करते हुओ कहा -'आपकी बात सब सही है। लेकिन बछड़ेका दुःख देखते हम
SR No.010402
Book TitleMahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaktavarlal Mahatma
PublisherVaktavarlal Mahatma
Publication Year1945
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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