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________________ ६ =७ ) निमाण मय करनाला के आये | भट्टारकनी मूर्तियों के साथ पवारी को वा मन्दिर मे पराने के लिये पवारिया उनके साथ आये । मन्दिर की पूजा करने वाले पुजारी दो के प्रति नाम रु० १) इकतालीस तनख्वाह मिलती थी, वायिक वे =२) रु० भट्टारकजी हस्ते मिलवा को हुकर नं० ४६७६ पौत्र शुका १२ स० १६६० हुआ । , इसी नेणावा की भारद्वाज गोत्री को निर्ग्रय ठिकाना "आचार्य पद" का भिरणाय इलाका अजमेर मे है जिसका वर्णन - उदयपुर भट्टारक गम्भृतसूरिजी का दूसरा शिव्य जयवन्तसरिजी भिरणाय जिला अजमेर में "आचार्य पद" को गादी स्थापित कर विराजे । इनके शिष्य लक्ष्मीचन्द्रजी, हँसराजजी, ठाकुरसीजी, मेघराजजी, कल्याणरायजी, गोदामजी. कुशालचन्द्रजी, हेमराजजी, श्रीचन्द्रमूरि, अनोपचन्द्रसूरि गुनाबवन्द्रजी, हरकचन्द्रजी, शिवचन्द्रजी, धनरुपचन्द्रजी, विजयचन्द्रजी हाल विद्यमान है । ( ठिकाने के साथ जीविका व लवाजमा को सनदों की नकलें वहाँ से नही आई जिससे अति नहीं का । ) भट्टारकजी उदयपुर से बाहर पधारे उसकी रीति भट्टारकजी किशोर राजेन्द्रसूरिजी गांव सरदारगढ़ उपाध्यायलानजी ओसवाला के द्वादमा पर पवारे । लवाजमा छड़ी, चामर, गोटा, मेघाडम्बर, मियाना क सहित । इसी तरह गाँव केलवा वाणारस मयाचन्दजी का द्वादसा मं वि० सं० १९७४ में पधारे वहाँ भी उपरोक्त लवाजमा साथ में था । भट्टारक प्रताप राजेन्द्रसूरिजी विक्रम सं० १६६४ के माघ शुक्ला १२ को शाम की गाडी से आमेट पहुँच कर मियाने में विराज
SR No.010402
Book TitleMahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaktavarlal Mahatma
PublisherVaktavarlal Mahatma
Publication Year1945
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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