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________________ १२) पर दफ्तर नहीं होने से नहीं लगा; उस पर भट्ट रामशङ्करजी दरीगा षट्दर्शन से दरियाफ्त हुआ । उसके जबाव में भट्टजी मोसुफ रिपोर्ट मवरखा दुती वैशाख सुदी १२ सं० १६७१ वि० बवापसी गुजारिश होके तं० १६२२ का वैशाख विद ८ के दिन गुरॉजी क्षेमराजजी के भट्टारकंजी की पथरावणी हुई सो हाथी व निशाण पहुँच्यो है वाजे रहे । उस पर राज श्री महक्मा खास से महक्मा फौज में हुकम हुवो । पहला मुत्राफिक वन्दोवस्त करा देवे । सं० १९७१ का वैशाख सुदी १२ ता० २६ ५-१६१५ ई० (द० काम करवा वाला का) फिर दुबारा वि० सं० १९७८ का श्रावण विद' ४ को पधरावणी हुई जिस मौके पर महक्मे फौज से जरिए चिट्ठी नं० ६ निशाण वगैरह व ... हाथी ताबे जरिए नं० १० आई । - भट्टारक किशोर राजेन्द्रसूरिजी का शरीर अस्वस्थ रहने से उन्होंने महाराणाजी श्री सर फतहसिंहजी के चरणों में निवेदन पत्री .लिख मारफत वहा पुरोहित अमरनाथजी के आसोज विद १२ बुधवार के दिन नजर कराई। "मारी ऊमर ७५ साल की है और हाल में मारे वीमारी है और शरीर जो 'नाशवान है जासु चरणारविन्दा में अरज है कि प्रतापराय ने शुभचिन्तक चेलो राख सं० १९७१ मे दीक्षा दीवी । अव या ठिकाणो व चेलो श्री चरणारविन्दा मे मेलू हूं सो धणी पालन करेगा।" . पहलॉ ई ठिकाणा का भट्टारक उड्यचन्द्रसूरिजी का परलाक वास रामसेए इलाका मारवाड़ में हुआ । और भट्टारक वर्धमानसूरिजी का परलोकवास ग्राम चिकारडा मे हुआ । इस जिए उनकी अन्त्येष्ठि क्रिया का वर्णन ठिकाना में न मिलवा सुं भट्टारक कशोर राजेन्द्रसूरिजी का परलोकवास वि० सं० १९८५ का श्रासोज शुक्ला ४ हुआ। उस दिन षट्दर्शनों का दारोगा को इत्तिला कराई तो स्वयं भट्टजी रामशङ्करजी पोशाले अाया और कही के, चालचलावा को खर्चों तो ठिकाना
SR No.010402
Book TitleMahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaktavarlal Mahatma
PublisherVaktavarlal Mahatma
Publication Year1945
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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