SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४७) १. द्रव्यनुयोग उसे कहते हैं जिमको अन्य भाषा में फिलास, फी या दर्शन शास्त्र कहते हैं । 1 २. कथानुयोगः - इसमें महा पुरुषों के जीवन चरित्र हैं । ३. गणितानुयोगः -- इसमें गणित ज्योतिष का विषय है । ४. चरणकरणानुयोगः -- इसमें चरण सत्तरी व करण सत्तरी का वर्णन है । 4 इन चारों पर बहुत से, सूत्रों व ग्रन्थों की रचना हुई है, उनमें से बहुत तो नष्ट होगए और बहुत से मौजूद हैं। संसार परिवर्तन शील है । सदा काल एकसा नहीं रहता । पहले संसार भोग भूमिका क्रीड़ा क्षेत्र बना हुआ था । विश्व को, अनुपम शान्ति उस काल में अनुभव हो रही थी, याने न तो किया फाण्ड थे, न लेन देन का व्यापार ही था । पाप पुण्य भी नहीं समझते थे । सिर्फ दस जाति के कल्प वृक्ष मनोवांछित फलों का दान देते थे । उससे उनका निर्वाह होता था । वे वृक्षों के नीचे ही निवास करते थे । यह समय युगलकों का था । उसकी सूक्ष्म झांकि कराता हूँ । इस जगत को जैनी द्रव्यार्थिक नय के मत्तानुसार- शाश्वत अर्थात् हमेशा प्रवाह में ऐसा मानते हैं । और दो प्रकार के कालों में समय का भाग करके छ आरो के नाम से विभक्त किया । उपर कहे हुए दो कालों को इस नाम से पुकारते थे । अवसर्पिणी काल, और दूसरे को उत्सर्पिणी काल । इन कालों का मान दम कोटा कोटि सागरो एस का शानका ने माना है। यहां अवसर्पिणी काल के आरो का नाम लिखता हूँ "
SR No.010402
Book TitleMahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaktavarlal Mahatma
PublisherVaktavarlal Mahatma
Publication Year1945
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy