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चाहिये पाँचवे प्रादि गुणस्थानों में नहीं। तथा पाँचवे से लेकर भागे के गुणस्थान, मनुष्यों और तिर्यञ्चों में यथासम्भव हो सकते हैं। देवों तथा नारकों में नहीं। मनुष्य और तिर्यञ्च भी आठ वर्ष की उम्र होने के बाद ही, पञ्चम-आदि गुणस्थानों को प्राप्त कर सकते हैं। पहले नहीं। परन्तु श्रानुपूर्वी का उदय वक्रगति के समय ही होता है इसलिये, किसी भी भानुपुर्वी के उदय के समय जीवों में पञ्चम-श्रादिगुणस्थान असम्भव हैं, नरक-गति तथा नरक-श्रायु का उदय नारकों को ही होता है; देवगति तथा देवश्रायु का उदय देवों में ही पाया जाता है; और वैक्रिय-शरीर तथा वैक्रिय-अगोपाग-नामकर्म का उदय देव तथा नारक दोनों में होता है। परन्तु कहा जा चुका है कि देवों और नारकों में पञ्चम-श्रादिगुणस्थान नहीं होते । इस प्रकार दुर्भग-नामकर्म, अनादेय नामकर्म और अयश-कीर्तिनामकर्म, ये तीनों प्रकृतियाँ, पहले चार गुणस्थानों में ही उदय को पा सकती हैं। क्योंकि पञ्चम-आदि गुपस्थानों के प्राप्त होने पर, जीवों के परिणाम इतने शुद्ध हो जाते हैं कि जिससे उस समय, उन तीन प्रकृतियों का उदय हो ही नहीं सकता। अतएव चौथे गुणस्थान में उदययोग्य जो १०४ कर्म-प्रकृतियाँ कही हुई हैं उनमें से अप्रत्याख्यानावरण-कषाय-चतुष्क आदि पूर्वोक्त १७ कर्म-प्रकृतियों को घटा कर,शेष ८७ कर्म-प्रकृतियों का उदय पाँचवे गुणस्थान में माना जाता है । पञ्चम-गुणस्थान-वर्ती मनुष्य और तिर्यञ्च दोनों ही, जिनको कि वैफियलब्धि प्राप्त हुई है, वैक्रियलब्धि के वलसे वैक्रियशरीर को तथा वैक्रिय-अङ्गोपाङ्ग को बना सकते हैं । इसी तरह छठे गुणस्थान में वर्तमान वैक्रियलब्धिं-सम्पन्न मुनि भी वैक्रियशरीर तथा वैक्रिय-अङ्गोपाङ्ग को बना सकते हैं । उस समय