________________
( ३५ )
संस्थाननामकर्म, वामनसंस्थामनामकर्म, कुब्जसंस्थाननामकर्म और हुंड संस्थाननामकर्म ये छः संस्थाननामकर्म (७) वर्णनामकर्म (८) गन्धनामकर्म (1) रसनामकर्म (१०) स्पर्शनामकर्म (११) नरकानुपूर्वीनामकर्म, तिर्यगानुपूर्वीनामकर्म, मनुष्यानुपूर्वीनामकर्म और देवानुपूर्वीनामकर्म- ये चार आनुपूर्वीनामकर्म (१२) शुभविहायोगतिनामकर्म और अशुभ विहायोगति नामकर्म ये दो विहायोगातनामकर्म-ये ३६ भेद' बारह पिण्ड- प्रकृतियों के हुये, क्योंकि बन्धननामकर्म और संघातननामकर्म- इन दो पिण्ड - प्रकृतियों का समावेश शरीरनामकर्म मैं ही किया जाता है । (१) पराघात- नामकर्म, (२) उपघातनामकर्म, (३) उच्छ्रासनामकर्म, (४) श्रातपनामकर्म, (५) उद्योतनामकर्म, (६) अगुरुलघुनामकर्म, ( ७ ) तीर्थङ्कर नामकर्म (८) निमाणनाम - कर्म ये आठ प्रत्येक नामकर्म । (१) त्रसनामकर्म, (२) बादरनामकर्म, (३) पर्याप्तनामकर्म, (४) प्रत्येकनामकर्म, (५) स्थिरनामकर्म (६) शुभनामकर्म, (७) सुभगनामकर्म, (८) सुस्वरनामकर्म, (६) श्रदेयनामकर्म और (१०) यशः कीर्त्तिनामकर्म - ये त्रसदशकनामकर्म (१) स्थावरनामकर्म, (२) सूक्ष्मनामकर्म, (३) अपर्याप्त नामकर्म, (४) साधारण नामकर्म, (५) अस्थिरनामकर्म, (६) शुभनामकर्म, (७) दुर्भगनामकर्म, (८) दु:स्वर - नामकर्म, अनादेय नामकर्म और (१०) अयशः कीर्त्तिनामकर्म-ये स्थावरदशकनामकर्म । ये कुल ६७ भेद हुये ।
७ - गोत्र- कर्म की दो प्रकृतियाँ, जैसे:- (१) उच्चगोत्र और. (२) नीचैर्गोत्र |
- अन्तरायकर्म की५ - कर्म - प्रकृतियाँ, जैसे:- (१) दानान्तराय, (२) लाभान्तराय, (३) भांगान्तराय, (४) उपभोगान्तराय, और (५) वीर्यान्तराय ।
{