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प्रश्न-जय मिथ्यात्वी को हष्टि किसी भी अंश में यथार्थ हो सकती है, तब उसे सम्यग्दृष्टि कहने और मानने में क्या बाधा है ?।
उत्तर-एक अंश मात्र की यथार्थ प्रतीति होने से जीव सम्यग्दृष्टि नहीं कहाता, क्योंकि शास्त्र में ऐसा कहा गया है कि जो जोव सर्वश के कहे हुये बारह अङ्गो पर श्रद्धा रखता है परन्तु उन अङ्गों के किसी भी एक अक्षर पर विश्वास नहीं करता, वह भी मिथ्यादृष्टि ही है । जैसे जमालि । मिथ्यात्व की . अपेक्षा सम्यक्त्वि -जीव में विशेषता यही है कि सर्वज्ञ के कथन के ऊपर सम्यक्त्वी का विश्वास अखंडित रहता है, और. मिथ्यात्वी का नहीं ॥१॥
सासादन, सम्यग्दृष्टि गुमास्थान-जो जीव श्रीपशमिक सम्यक्त्वी है,परन्तु अनन्तानुवन्धि कपाय के उदय से सम्यक्त्व को छोड़ मिथ्यात्व की ओर झुक रहा है, वह जीव जव तक मिथ्यात्व को नहीं पाता तब तक-अर्थात् जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छः प्रावलिका पर्यन्त सासादन सम्यग्दृष्टि कहाता है और उस जीव का स्वरूप-विशेष"सासादन सम्यग्दृष्टिगुण स्थान" कहाता है । ।
इस गुणस्थान के समय यद्यपि जीव का झुकाव मिथ्यात्व की और होता है, तथापि जिस प्रकार खीर खा कर उस का वमन करने वाले मनुष्य को खीर का विलक्षण स्वाद अनुभव में आता है, इसी प्रकार सम्यक्त्व से गिरकर मिथ्यात्व की
और झुके हुये उस जीव को भी, कुछ काल के लिये सम्यक्त्व गुण का श्रास्वाद अनुभव में प्राता है। अत एवं इस गुण स्थान को “सास्वादन सम्यग्दृष्टिगुणस्थान' भी कहते हैं।