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(११) नमुत्थणंटीका:- चैत्यवन्दन विधि मे नमुत्थणं ग्रन्थ के सूत्रो पर वृत्ति के रूप मे इस ग्रन्थ की रचना की गई है।
(१२) जीरावल्ली पार्श्वनाथ स्तवः - इसमें कुल १४ श्लोक हैं। मूल मे ११ श्लोक और अन्त मे ३ श्लोक | इस स्तव की रचना सर्प विष के निवारण हेतु किये थे। इसका आदि है ॐ नमो देवदेवाय । इस स्तव का दूसरा नाम त्रैलोक्यविजय महामन्त्र है । अचलगच्छ में इस मन्त्र का अत्यधिक महत्व
(१३) सूरिमन्त्रकल्प सारोद्धारः - ५५८ श्लोक की रचना कवि ने इस ग्रन्थ मे की है जो कि शुद्ध संस्कृत भाषा में निबद्ध है।
(१४) संभवनाथ चरित्रः- आचार्य मेरुतुङ्ग ने इस ग्रन्थ की रचना विक्रम संवत् १४१३ मे की है।
(१५) शतपदी सारोद्धारः - इसका दूसरा नाम 'शतपदी समुद्धार' है। इसकी रचना १४५६ मे आचार्य ने किया है।
(१६) जेसासी प्रबन्धः - इस ग्रन्थ के विषय में शङ्का है। श्री पार्श्व ने इसका भी उल्लेख किया है। '
(१७) स्तम्भक पार्श्वनाथ प्रबंधः- इसका मात्र नामोल्लेख मिलता है। इसकी रचना आचार्य ने संस्कृत भाषा में किया गया है।
(१८) नाभिवंश काव्य :- आचार्य द्वारा रचित इस महाकाव्य का मात्र नामोल्लेख मिलता है। *
अंचलगच्छ दिग्दर्शन श्री पार्श्व पृ. सं. २२३ पर। अंचलगच्छदिग्दर्शन श्री पार्श्व पृ. सं. २२० वही अंचलगच्छदिग्दर्शन श्री पार्श्व पृ. सं. २२२