________________
27
मे वानरो का दल भेजा जा रहा है। लंका की ओर भेजे जाते हुए हनुमान जी को विशेष बलशाली तथा कुशल देखकर रामचन्द्र जी उनका विशेष स्वागत करते है। तथा अभिज्ञान स्वरूप अपनी अँगूठी देकर उन्हें सीता जी के प्रति दिया जाने वाला अपना सन्देश भी सुनाते हैं। मौलिक दूत काव्य होने के साथ-साथ मेघूदत की समस्या पूर्ति होने के कारण आधुनिक संदेश काव्य मे एक विशिष्ट स्थान रखता है। मन्दाक्रान्ता छन्द ही काव्य में प्रयुक्त है। यह दूत काव्य दो भागो मे बॅटा हुआ है पूर्व भाग में ६८ तथा उत्तर भाग में ५८ श्लोक हैं। काव्य मे विप्रलम्भ शृङ्गार रस प्रधान है। विषय, भाव तथा शैली इत्यादि की दृष्टि से यह काव्य मेघदूत जैसा है। अतः भावों तथा रस की समानता ने भी काव्य को दुरूह नही बनने दिया है। शिल्प विधान के दृष्टिकोण से भी यह दूतकाव्य ठीक ही है। मेघदूत की समस्यापूर्ति होने के कारण जैनेतर दूतकाव्यो मे इस काव्य का एक विशिष्ट स्थान है।
उपर्युक्त दूतकाव्यों के अतिरिक्त अन्य और भी दूतकाव्यों का अन्य काव्यो मे उल्लेख मिलता है जिनका संक्षिप्त मे वर्णन वर्णक्रमानुसार इस प्रकार है।
१
अनिलदूतम् : यह दूत काव्य कृष्ण कथा पर अधारित है। काव्य में वायु द्वारा दौत्य-कर्म सम्पादित करवाया गया है। इस दूतकाव्य के रचयिता श्री रामदयाल तर्क रत्न है । दूत काव्य का प्रथम श्लोक है:
श्रीमत्कृष्णे मधुपुरगते निर्मला कापि बाला गोपी नीलोत्पलनयनजां वारिधारां वहन्ती । म्लानिप्राप्त्या शशधरनिभं धारयन्ती तदास्यं गाढप्रीतिच्युतिकृतजरा निर्भरं कातराऽभूत् ।
प्राच्य वाणी मन्दिर कलकत्ता की हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची में द्रष्टव्य ।
१