________________
यह काव्य मेघदूत का अनुकरण है। फिर भी काव्य मे अनेक स्वतन्त्र कल्पनाएं पाई जाती है और विप्रलम्भ शृंगार का तो बड़ा ही भाव पूर्ण चित्रण किया गया है। काव्य की भाषा मधुर तथा प्रसाद पूर्ण है। समग्र काव्य मे १२३ श्लोक है। जो मन्दाक्रान्ता छन्द मे उपनिबद्ध है।
पिकदूत' :- पिकदूत काव्य के रचयिता भी रूद्रन्यायपञ्चानन है। यह पिकदूत एक बहुत छोटा सा दूतकाव्य है। इस दूतकाव्य की एक हस्तलिखित प्रति कलकत्ते के प्रो० चिन्ताहरण चक्रवर्ती एम० ए० के निजी पुस्तकालय में है। इस काव्य में मथुरा मे स्थित श्रीकृष्ण के पास राधा ने वृन्दावन से पिक को अपना दूत बना कर भेजा है। इस दूत काव्य का समय विक्रम सप्तदश शतक का उत्तरार्ध है। दूतकाव्यो के शिल्पविधान मे शार्दूलविक्रीडित छन्द का प्रयोग कर कवि ने अपनी मौलिकता का परिचय दिया है। विरह वर्णन में तीव्रता होते हुए भी शृङ्गारिकता संयत रूप से काव्य मे पाई जाती है। भाव तथा रस के अनुकूल काव्य में माधुर्य गुण और वैदर्भी रीति सर्वत्र पाई जाती
__भृङ्गदूत :- यह सन्देशकाव्य ‘नागपुर विश्वविद्यालय पत्रिका' सं. ३ दिसम्बर, १९३७ में प्रकाशित हुआ है। प्रस्तुतदूत काव्य के रचयिता शताव धानकवि श्रीकृष्ण देव हैं। काव्य की कथा इस प्रकार है- पूर्णानन्द, परमपुरूष, कमलनयन श्री कृष्ण भगवान् के विरह में एक गोपी अत्यन्त व्याकुल रहती है। चांदनी रात भी कल्प के समान उसे प्रतीत होती है। एक दिन सूर्योदय होने पर मधुर-मधुर गूंजता हुआ एक भौरां उसे दिखाई पड़ जाता है। बस, कृष्ण के पास अपना सन्देश भेजने के लिए उसे अपना दूत बनाकर श्री कृष्ण के पास भेजती है। यह काव्य पूर्णतया मेघूदत की शैली पर ही लिखा गया है। मन्दाक्रान्ता छन्द का ही काव्य में प्रयोग है। काव्य की
।
सं० के सन्देश काव्य पृ० सं० ४२२-२३