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काव्य मे है। कवि का भाषा पर पूर्ण अधिकार है। काव्य में सर्वत्र प्रवाह पाया जाता है। विषय व्यवस्था, शैली, छन्द और भाव विन्यास सभी मे मेघदूत का अनुकरण किया गया है।
उद्धव- -संदेश' उद्धव संदेश दूतकाव्य के रचयिता रूप गोस्वामी हैं। प्रस्तुत दूत काव्य का समय वि० षोडश शतक का उत्तरार्ध माना गया है। कवि ने अपनी कल्पना से मार्गवर्णन, मार्ग मे द्रष्टव्य स्थानो का महत्व, गोपियो के चरित का कीर्तन तथा अन्य रमणीय प्रसंग उपस्थित कर काव्य को मधुर बना दिया है। उपर्युक्त काव्य मे श्रीकृष्ण गोपियों की विरह-वेदना का वर्णन उद्धव से करते हैं तत्पश्चात् राधा की मनोव्यथा का वे विशेष रूप से उल्लेख करते है तथा उसको सान्त्वना देने के लिए उद्धव से गोकुल जाने की प्रार्थना करते है। काव्य का मुख्य रस विप्रलम्भ शृगार ही है । समग्र काव्य मे मन्दाक्रान्ता छन्द का प्रयोग है । काव्य में कुल १३१ श्लोक है। यह दूतकाव्य मेघदूत के अनुकरण पर लिखा गया है। अतः इसकी भाषा शैली आदि पर मेघदूत की स्पष्ट छाप दीख पड़ती है।
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हंदू इस दूतकाव्य की कथा काल्पनिक ही है। श्रीमद्भागवत से प्रेरणा लेकर ही यह काव्य लिखा गया है। काव्य की कथा इस प्रकार है । भगवान् श्री कृष्ण जब अक्रूर के साथ मथुरा चले जाते हैं तब राधा अपने खिन्न मन को बहलाने के लिए अपनी सखियों के साथ यमुना तट पर जाती है। वहाँ कृष्ण की स्मृति आ जाने पर तत्काल मूर्छित हो जाती है। इस प्रकार जब वह पुनः चैतन्य को प्राप्त करती हैं उसी समय किसी सखी को हंस दिखाई पड़ जाता है वह उसे अपना दूत बनाकर कृष्ण की सभा में मथुरा भेजती हैं। हंसदूत काव्य के रचनाकार रूपगोस्वामी है। प्रायः दूतकाव्यों में
संस्कृत के सन्देश काव्य पृ० सं० ३७५-७६
संस्कृत के सन्देश काव्य पृ० सं० ३८५