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कृष्ण की आठो पत्नियाँ विदुषी है; उन्हे अध्यात्मिक दार्शनिक, साहित्यिक सभी प्रकार के विषयों का ज्ञान है। ये अपने देवर श्री नेमि से अत्यधिक प्रेम करती है। ये सभी मिलकर श्री नेमि से जल-क्रीड़ा करती हैं और उन्हें राजीमती का पाणि ग्रहण करने के लिए तैयार करने के लिए चेष्टा करती हैं।
काव्य में अन्य पात्रो के रूप मे श्री नेमि के माता-पिता भी हैं। इनके पिता का नाम श्री समुद्र और माता का नाम शिवा देवी है। श्री समुद्र राजाओ मे श्रेष्ठ है और दशो दिशाओ के स्वामी हैं। वे अत्यन्त धार्मिक और बलशाली है। इनके राज्य मे इनकी प्रजा सुखी है। अपने पुण्य कर्मों के कारण ये सदैव विजय को प्राप्त करते है। ये अति प्रकृष्ट बुद्धि वाले हैं। शिवा देवी
और श्री समुद्र का हृदय वात्सल्य प्रेम से भरा हुआ है; श्री नेमि के माता पिता प्रमदवन मे युवतियो के साथ क्रीड़ा करते हुए यदुकुमारों को देखकर भाव विह्वल हो जाते हैं। उन्हे पाणिग्रहण करने का आग्रह करते हैं। श्री नेमि के माता-पिता को अपने पुत्र का विवाह देखने की अत्यधिक लालसा है।
इस प्रकार आचार्य की तूलिका से चित्रित पात्र पाठको के चित्त पर अपना अमिट प्रभाव डालते है। सच्चा कवि वही है जो संसार का विविध अनुभव प्राप्त कर उनके मार्मिक पक्ष के ग्रहण में समर्थ होता है; और इस कसौटी पर कसने से आचार्य मेरुतुङ्ग का दूतकाव्य 'जैनमेघदूतम्' खरा उतरता है।