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जीवन दृष्टि एवं जीवन मूल्य
आचार्य मेरुतुङ्ग का साहित्य क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान है। आचार्य मेरूतुङ्ग जैनी हैं अतः इनकी जैन धर्म में पूर्ण आस्था है। इन्होनें जैन धर्म के प्रख्यापन हेतु जैनमेघदूतम् की रचना की है। जिसमें इन्होनें जैनधर्म के २२ वें तीर्थकर श्री नेमि के जीवन चरित्र के आधार पर जैन धर्म के सिद्धान्तों को प्रतिपादित करते हुए जीवन के मूल्य एवं जीवन दृष्टि को दर्शाया है।
कवि ने 'मोक्ष' को ही जीवन की दृष्टि एवं जीवन का मूल्य समझा है। मोक्ष की प्राप्ति 'मि रत्न' के माध्यम से की जाती है ऐसा जैनदर्शन की मान्यता है। प्रसिद्ध जैन दार्शनिक उमा स्वामी का कहना है कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चरित्र ही मोक्ष के साधन है। ये तीनों मिलकर ही मोक्ष का साधन बनते है अलग-अलग नहीं। अतः ये त्रिरत्न कहे जाते हैं।
काव्य का नायक श्री नेमि के चरित्र में ये त्रिरत्न (सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चरित्र) की पूर्णतः प्राप्ति होती है।
१. सम्यग्दर्शन - सम्यग्दर्शन का तात्पर्य है सच्ची आस्था या श्रद्धा। हमे यथार्थ सच्ची आस्था के बिना नहीं प्राप्त हो सकता। अतः सम्यग्दर्शन ही सम्यग्दृष्टि उत्पन्न करता है। सम्यग्दर्शन के आठ अंग बतलाये गये हैं:
२. निःशंकता - सत्यमार्ग के अपुसरण में साधक को निःशंक होना चाहिए। अपने गन्तव्य मार्ग पर तथा मार्गद्रष्टा पर अविचल विश्वास या अट्ट श्रद्धा होनी चाहिए। काव्य मे श्री नेमि सत्य-मार्ग में निःशंक हैं, वे अपने माता-पिता एवं स्त्री धन-सम्पत्ति सभी कुछ त्याग की अटूट श्रद्धा से अपने गन्तव्य मार्ग पर बढ़ते जाते हैं।
___ सम्यग्दर्शनज्ञानचरित्रमोक्षमार्गः - तत्त्वर्थाधिगमसूत्र १/१