________________
205
बिम्ब योजना
बिम्ब' बिम्ब का आविर्भाव कल्पना से होता है और बिम्बों से प्रतीक का। बिम्ब विधान कला का क्रिया पक्ष है जब कल्पना मूर्त रूप धारण करती है, तब बिम्ब उत्थित होते है और जब पुनः पुनः प्रयोग के कारण किसी बिम्ब का निश्चय अर्थ निर्धारण हो जाता है, तब प्रतीक का निर्माण होता है। अतः तात्त्विक दृष्टि से बिम्ब कल्पना और प्रतीक का मध्यस्थ बिन्दु है।
"बिम्ब विधान बहुत अंशों मे कलाकार की सहजानुभूति की अभिव्यक्ति की सफलता को प्रमाणित करता है और कलाकार की सौन्दर्यचेतना को भी द्योतित करता है। वस्तुतः विम्ब विधान कला का वह मूर्त पक्ष है जिससे कलाकार की भावना से श्लिष्ट सौन्दर्यानुभूति को वस्तु सत्य का संस्पर्श या तदगत सम्पृक्त आधार के साथ सादृश्याभास मिल जाता है। शायद इसीलिए पाश्चात्त्य सौन्दर्यशास्त्रियों तथा काव्याचार्यों ने बिम्ब . विधान को कविकी अभिव्यंजना का अनिवार्य एवं निर्वैकल्पिक प्रसाधन माना
बिम्ब वस्तुजगत् के संसर्ग से मन में उत्पन्न अरूप भाव संवेदनों को रूप प्रदान करते है। इसके अतिरिक्त संश्लिष्ट एवं समृद्ध विम्ब अभिव्यंजना को रूप सज्जा और अलंकरण भी प्रदान करते है। काव्य मे बिम्ब की यह उपयोगिता है।
साधारण अर्थ में काव्यगत बिम्ब शब्दो द्वारा निर्मित चित्र है। शब्दों द्वारा चित्र खडा करना बिम्ब की मूलभूत विशेषता है। बिम्ब यथा तथ्य और
पंतकाव्य मे कला शिल्प और सौन्दर्य पृ. सं. २०-२१ सौन्दर्यशास्त्र के तत्त्व- डॉ० कु. विमल पृ. २०१