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हृदय को मन्द-मन्द गति से संतोष देना चाहती है। इस प्रकार यह मेघ करूणा का सागर है, यह दीन दुखियों के दुःखों को सुनता है, अपने सत्त्व से पृथ्वी को सींचते हुए अखिल विश्व की सृष्टि करता है, अन्धकार समूह का विनाश करता है। अतः यह मेघ अतिनम्र कोई अभिनव त्रिरूपधारी देव है। इस प्रकार कवि ने प्रकृति को सजीव पात्र की भाँति वर्णन किया है।
कवि ने वर्षाकालीन मेघ का चित्रण करने के पश्चात् वसन्त ऋतु का हृदयग्राही बिम्ब उभारा है। वसन्त के आने पर नये नये कपोल एवं सुन्दर सुन्दर पत्तों से मुक्त वृक्ष राग-पराग रूपी लक्ष्मी के साक्षात् निवास की तरह शोभित हो रहे मन मे राग को उत्पन्न करने वाले फूलो की रज से आकाश को व्याप्त करती हुई कमियों के लिए प्रिय मलयाचल की हवाएं मन्द मन्द बह रही है अर्थात् ऐसा लग रहा है कामदेव के घोडे स्वच्छन्दतापूर्वक विचरण करते हुए काम रूपी फूलों के राग रूपी धूल से पूरे आकाश को व्याप्त कर रहे है।
वसन्त के आगमन पर पर्वत की शोभा अवर्णनीय प्रतीत हो रही है - रेजुः क्रीडौपयिकगिरयो राजातालीवनाढ्याः श्यामा: कामं किशलितनगा निष्क्रमोचापराताः सन्नह्यन्तः स्मरनरपतेः केतनवातकान्ताः सिन्दूराक्ता इव करटिनो वर्ण्यसौवर्णवर्णाः।'
अर्थात् वसन्त के आने पर वनों के कारण काले दीखने वाले क्रीडायोग्य पर्वत कामरूपी राजा के युद्ध के लिये तैयार हाथियों की तरह शोभित हो रहे हैं। पर्वत पर उगे ताड़ के वृक्ष ही उनकी ध्वजाएँ हैं वृक्षों के
जैनमेघदूतम् २/३