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काव्यसौन्दर्य
(१) प्रकृति चित्रण -
प्रकृति मानव की शिक्षिका है, भावनाओं की पोषिका है, सुख-दुःख की सङ्गिनी है एवं अस्तित्व की धात्री है। मानव जीवन स्वयं प्रकृति के विशाल जीवन का एक अङ्ग है। फिर कवि तो प्रतिभासम्पन्न एवं कल्पनाशील होने के कारण प्रकृति से कैसे दूर रह सकता है वह प्रकृति की सहायता से ही अपनी कल्पना को साकार रूप प्रदान करता है।
समस्त संस्कृत वाङ्गमय मे प्रकृति वर्णन अपना विशेष महत्त्व रखता है। आचार्य मेरुतुङ्ग कृत जैनमेघदूतम् में भी प्रकृति का भव्य रूप दृष्टिगत होता है। कवि ने प्रकृति का ललित तथा सुकुमार दोनों ही पक्षों का वर्णन किया है। अतः काव्य मे प्रकृति का सौम्य रूप सर्वत्र विद्यमान है। कवि को प्रकृति से अत्यधिक अनुराग है तभी तो उसने सुरतरु के सदृश ऊँचा जो रैवतक पर्वत है उसको तपस्या स्थली के रूप में स्वीकार किया है। ___आचार्य मेरुतुङ्ग की प्रकृति वर्णन के कुछ वैशिष्ट्य है- कवि ने प्रकृति के उद्दीपनात्मक स्वरूप को अपनाया है, मानवीय संवेदना को स्पष्ट करने के लिए उनके समान घटनाओ को प्रकृति में ढूढा है, कवि ने तीनों ऋतुओ का बडा ही स्वभाविक एवं सजीव वर्णन किया है, किसी भी वातावरण का वर्णन करने में प्रकृति का आश्रय लिया हैं। कवि ने प्रकृति से जो बिम्ब चयन किया है वे मानवीय भावनाओ के साथ सामानान्तर चलते हैं और मानवीय भावनाओ को अभिव्यक्ति करने में सहायक है।
कवि ने तीनों ऋतुओं वर्षाऋतु, बसन्तऋतु एवं ग्रीष्म ऋतु का बड़ा ही स्वभाविक एवं सजीव चित्रण किया है। सर्वप्रथम कवि ने वर्षा ऋतु का