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कवि कालिदास के अनुसार मन्दाक्रान्ता छन्द में अन्त के दो अक्षर गुरु और प्रथम चार, द्वितीय छः तथा द्वितीय सात वर्णो पर विराम होना चाहिए।'
कवि मेरूतुङ्ग के भी काव्य में इस बात का निदर्शन मिलता है। यथा
कश्चित्कान्ता (४)/ मविषयसुखा (६)/ नीच्छुरत्यन्तधीमा (७)/ प्रत्येक श्लोक मन्दाक्रान्ता के सुस्पष्ट लक्षणों द्वारा विभूषित काव्य की शोभा बढ़ाने तथा रसास्वादन कराने मे पूर्णतः सक्षम है। काव्य की नायिका राजीमती अत्यधिक शोक से पीड़ित है तथा वह बार-बार मूर्छित हो जाती है और अपने विषाद एवं पीड़ा को अत्यधिक मन्द-मन्द गति से रूक-रूक कर अपने सन्देश को मन्दाक्रान्ता छन्द मे निबद्धत कर मेघ से सुनाती है तथा उसे जाकर कहने के लिए प्रेरित करती है। आचार्य ने मन्दाक्रान्ता छन्द का प्रयोग कर अपने काव्य को जीवन्त बना दिया है। क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग करते हुए कही भी काव्य की मधुरता मे कमी नहीं आने दी गयी है।
श्रुत बोध १८