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जानकर कि हमारे शत्रु श्री नेमि के भक्त है, अत्यन्त पीड़ित की जाती हुई, प्रिय विरहिता भोजकन्या राजीमती मूर्च्छित हो गयी।
माधुर्य गणु के कारण व्यंग्यार्थ कुछ इस प्रकार है- मोह आदि महाशत्रुओ को परास्त करने में श्री नेमि ने काम जिसमें प्रमुख है ऐसी विषय समूह शत्रु सेना के प्रति जब शील क्षमा आदि नवीन गुणो वाली तथा एषणा समिति से युक्त दीक्षा को ग्रहण किया तब उनका उपकार न कर सकने वाले, छल युद्ध मे कुशल कामदेव द्वारा ऐसा जानकर कि यह राजीमती नेमि भक्त भी है तथा असहाय भी है, इसलिए अत्यन्त पीड़ित की जाती हुई भोजकन्या राजीमती मूर्च्छित हो गयी।
कवि ने शृङ्गारिक प्रसंगो के वर्णन में माधुर्य गुण का प्रयोग किया है। काव्य में माधुर्य लाने का पूरा प्रयास किया है। परन्तु कुछ अप्रचलित और गूढ़ शब्दो के प्रयोग से काव्य दुरूह बन गया है जिसे समझने के लिए सामान्यजन तो क्या सहृदय रसिक भी कोष पलटने के हेतु मजबूर हो जाता है। उदाहरणार्थ जैनमेघदूतम् के एक श्लोक मे इसीप्रकार के अप्रचलित क्लिष्ट शब्दो का निदर्शन मिलता है -
काचिच्चञ्चत्परिमलमिलल्लोलरोलम्बमालां मालां बालारूणकिशलयैः सर्वसूनैश्च क्लप्ताम् । नेमे कण्ठे न्यधित स तथा चाद्रिभिच्चापयष्ट्या रेजे स्निग्धच्छविशितितनुः प्रावृषेण्यो यथा त्वम् ।।'
अर्थात किसी पत्नी ने सभी प्रकार के फूलों एवं नये, लाल पत्ते से गुंथी जिस पर भौरों का समूह मडरा रहा हो ऐसी माला को श्री नेमि के गले
जैनमेघदूतम् २/१९