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गली होकर रात अब हिलालने से मुझे
(७७) तएणं से समणे भगवं महावीरे माऊए अयमेयारूवं अमस्थिनं पत्थिनं मणोगयं संकप्पं समुप्पन्नं वियाणित्ता एगदेसेणं एयइ, तरणं सा तिसला वत्तियाणी हट्टतुट्ठा जाव हयहिअया एवं वयासी ।। ६३॥ ' माता पिता की इतनी पुत्र की तरफ स्नेह दृष्टि देख कर उनका दुःख को समझकर उनका दुःख निवारणार्थ जरा हिले, हिलते ही माता को गर्भ का सचेतन पना देखकर हर्प तुष्टि से हृदय भरजाने पर इस तरह बोली । , मेरा गर्भ हिलता है इसलिये वह जीवित है किसीने उसका हरण नहीं किया न मरगया है न नाश हुआ है क्योंकि पूर्व में न हिलने से मुझे अंदेशा पहा था कि उसका नाश होगया होगी परन्तु अब हिलता है इसलिये वह जिंदा है ऐसा कहकर प्रसन मुख वाली होकर फिरने लगी ( सबकी चिंता भी साथ दूर होने से पूर्व की तरह वाजिंत्र गायन होने लगे ).
नो खलु मे गम्मे हडे जाव नो गलिए, मे गम्भे पुबिनो एयड़, इयाणिं एयइ तिकटु हट्ठ जाव एवं विहरह, तरणं समणे भगवं महावीरे गभत्थे चेव इमेयारूचं अभिग्गहं अभि. गिरहइ-नो खलु से कप्पइ अम्मापिगंह जीवंतहि मुडे भवित्ता अगाराभो अणगारिश्र पवइत्तए । ६४ ॥ .
(सब को आनन्द हुआ परन्तु महावीर प्रभु को मन में विचार हुआ कि शल्यकाल मेग हिलना बंद हुवा तो ऐसा उन्होंने दुःख पाया तो मैं दीवा लेगा तो मेरे वियोग से मानायंगे ऐसा विचार हाजाने से ) मनिज्ञा ( अभिग्रह) लिया कि मैं उनको वियोगी न बनाउंगा जहां तक वे जीवित है वहां तक उन को लोड दीक्षा नहीं लगा न गृहवास छोडंगा.
तएणं सा तिसला खतियाणी राहाया कयवलिकम्मा क. यकोउयमंगलपायच्छित्ता सबालंकारविभसियानं गभं नाइ.