SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ६३ ) पाढगाणं गेहाई, तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सुविएलक्खणपाढए सद्दाविंति ॥ ६६ ॥ सिद्धार्थ राजा के पास से रवाने होकर नोकर लोग क्षत्रिय कुंड शहर के मध्यभाग में होकर जहां पर स्वम पाठक ज्योतिषियों के घर थे वहां आये. ज्योतिषियों को बुलाकर राजाज्ञा सुनाई जिसे सुनकर वे लोग राज्य मान से खुश डोकर स्नान कर देव पूजन कर तिलक कौतुक मंगल शकुन देखकर, स्वच्छ वस्त्र पहन, विविध आभूषण धारण कर आभूषण जिनमें वजन कम हो पर जिन का मूल्य ज्यादा हो सफेद सरसव और द्रोच से मस्तक भूषित कर अपने २ घरों से निकल कर शहर के मध्य भाग में होकर राज्य महल के समीप आये और राज्य ड्योढी पर सर्व ने मिलकर अपना एक २ नायक बनाया. दृष्टांत. एक समय ५०० सुभट मिलकर नोकरी के वास्ते एक शहर के राजा के पास गये वे सर्व अर्थात् ५०० ही स्वतन्त्र थे उन में से कोई भी एक को नायक नहीं स्वीकार करना चाहता था राजाने उनकी परीक्षा करने के हेतु सर्व के लिये सिर्फ एक शय्या रात्री में सोने को भेजी उनमें तो सर्व अपने को चराघर समझने वाले थे. एक शय्या पर सर्व किंस प्रकार से सोत्रं आखिर सत्र में यह निश्चय हुवा कि सर्व अपना एक २ पैर इस शय्या पर रख कर सोवें और इसी प्रकार सर्व सोंगये. राजाने यह वार्ता सुनकर और मन में यह विचार किया कि यदि यह लोग लड़ाई में जावें तो अफसर के आधीन कदापि नहीं रहसते उन लोगों को अर्थात् ५०० ही सुभट्टों को नोकरी देने से अनिच्छा प्रकट कर वहां से निकाल दिये. तणं ते सुविणल+खपाढया सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कोडुविपुरिसेहिं सावित्रा समाणा हट्टतुट्ट जावहियया रहाया कयवलिकम्मा कयको मंगलपायच्छित्ता सुद्धावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवराडं परिहिया अप्पमहग्घभरणालंकियसरीरा सिद्धत्थय हरियालिया कय मंगलमुद्धाला सहिं २
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy