________________
(५) मागृत होकर राजा के पास जाना और राजाने जागृत होकर सब सुनकर प्रभात में जोतिपिओं को बुलाकर हाल सुनाना...
चोय व्याख्यान में माता के दोहद और प्रभुका जन्म होना बताया.
पांचवे में दीक्षा तक का चरित्र है छ8 में साधू का उत्तम आचरण पालना परिसइ सहना केवल ज्ञान और मुक्ति संपदा का वर्णन है.
सातवे व्याख्यान में पार्श्वनाथ नेमिनाथ चरित्र और २० तीर्थंकरों का अंतर है ऋषभदेव का चरित्र है.
आठवे व्याख्यान में स्थविगवली है. . नवमें व्याख्यान में साधुओं की चोमासो की विशेष समाचारी है.
मरौ भूमा श्रेष्ठ, नगर मजमेरं प्रशमदं । स्थितोई श्राद्धानां गुण रुचित्रतां ज्ञान रतये ।। व्यधायि व्याख्यानं सुगुरु कृपया कल्प कथनं ।
पुरा पुण्याद्वन्धा ! पटतु च भवान्मोच जनकं ।। २ ॥ वंशाखे शनिवासरे शुभ तिथौ युग्माधि वेढाक्षिके । पञ्चम्यां लिखितः समाधि जनकः पने च शुक्ने तरे ।।
ट्ठा वृद्धि शशी सुधी निजयनं धर्मार्थ माशंसत ।
तत्सौभाग्यमलेन पुण्यमतिना दत्तं यतो मुद्रणे ।। ३ ॥ ता. १८ जून १९१६. 1 लाखन कोटड़ी अजमेर.
मुनि माणक्य. ५१) रुपये वीजराजजी कोटारी मिर्जापुर वाले.
३१) रुपये श्रीरामजी देहली नवघरे वाले ने प्रथम देकर बड़ी सहायता की है और जिन्होंने पहिले रकम देकर अथवा पहिला नाम नोंघाकर ग्रंय की फदर की है उन सब को इस जगह धन्यवाद देने योग्य हैं.
प्रकाशक-सोभागमल हरकावत.
•e+