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( ५४ ) णं बहुपडिपुराणाणं अट्ठमाणं राइंदियाणं विकंताणं अम्ह कुलकेलं, अम्हं कुलदीवं, कुलपब्धयं, कुलवडिंसयं, कुलतिलयं, कुलकित्तिकर, कुलवित्तिकरं, कुलदिणयरं, कुलाधारं, कुलनंदिकर, कुलजसकरं, कुलपायवं, कुलविवद्धणकर, मुकुमालपाणिपायं, अहीणसंपुरणपंचिंदियसरीरं लक्खणवंजणगुणोववेयं, माणुम्माणप्पमाणपडिपुण्णसुजायसव्यंगसुंदरंगं, ससिसोमाकारं, कंतं, पियदंसणं, दारयं पयाहिसि ॥ ५२ ॥
ई देवानुप्रिय ! तुमन उदार स्वप्न देखे हैं, कल्याण करने वाले, शिव, धन, आगेग्यना, दीर्घ आयु को देने वाले उत्तम स्वप्न देवे हैं इनमे आप को अर्थ लाभ, भोग लाभ और पुत्र लाभ, नव मास और साढे सात दिन बाद होगा वो पुत्र हमारा कुल केतु कुल दीपक कुल पर्वन, कुल अवतन्स, कुलनिलक, कुल कीर्तिकर कुल दिनकर, कुल श्राधार, कुलनंदिकर, कुलजसकर, जुलपादप (वृक्ष ) कुल बर्द्धनकर, सुकुमाल हाथ पग वाला, योग्य संपूर्ण पांच इन्द्रिय शरीर वाला, लक्षण व्यञ्जन गुणयुक्त, मान उन्मान प्रमाण और प्रतिपूर्ण, - मुजात, सोंग मुन्दर, चन्द्र समान साम्य, कान्न, प्रियदर्शन, स्वरूप वाला, होगा अर्थात् तुझे उत्तम गुण, लक्षण वाला सुन्दर पुत्र होगा.
सेविय णं दारए उम्मुक्कवालभावे विनायपरिणयमिते जुब्बणगमणुएत्ते सूरे वीरे विकंते विच्छिन्नविउन्लवलवाहणे रज्जई राया भविस्सइ ॥ ५३॥
और वह बालक बाल्यावस्था समाप्त कर जिस समय युवान् होगा उस समय विज्ञान का परिणमन (प्राप्ति ) होने से अर्थात् विज्ञान विद्या में पारंगामी हाने से शूर, वीर, विक्रांत (तेजस्त्री ) विस्तीर्ण, विपुल बलवाहन धारक और राज्याधीश होगा (अत्रिय पुत्र के लक्षण सिद्धार्थ राजा ने बताय)
तं उराला णं तुमे देवाणुप्पिया ! जाव दुचंपि तचंपि अणुवुहइ ॥ तएणं सा तिसला खत्तियाणी सिद्धत्थस्स रणो