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(20) मा हिययनयण कंतं परममा नाम सरं महाभिरामं १० ॥ १२ ॥ .. - एममरोवर का वर्णन । - उसके पश्चात उनमें स्त्रम में त्रिमला सीन पदय सगेवर देखना जिसमें कमले गवि के किरणों में विकलर पद्म के पन होगये हैं उसमें सुगंयमय है और मृय की प्रभात की धूप में लाल पीला हांगा है जब जिम गंमा नगंवर
और जल में चलने वाले जनचा प्राणी के ममुह से पानी का मर्वत्र उपयोग होता है जिसका पाणी कपल कुवलय, उचल, नामग्य, पुंडरिक इत्यादि कई प्रकार के कमलों में जलना हुवा अग्नि के समान गांभायमान, रमणीय स्प वाला अनन्य दीग्वना था और जिस मगंबर में ग्रानन्दिन भंवर्ग का समूह और मन भंवरियों का समूह गुंजार कर रहा र कपनों का समुद्राय था और मगंबर में काईवक, कलहंस, बगळे, चक्रवाक सागस इन्यादि जलचर मुख से गर्विष्ट थे और वे पी अपनी २ मिथुन ( नर मादा) माय पाणी में क्रीडा करह ार कमल के पनों पर उछलने जलंक विन्द लग रहे थे व एम शामायमान होते थे कि जप हर रंग के पन्ने पर मच्चं पानी के दाणं लंग हो ऐसा पद्म मगंवर मनाहर, हृदय और मंत्र को प्रानन्दन वाला त्रिगला गणी न बन में दवा. ___ तो पुणा चंदकिरणरामिमरिमसिस्विच्छमोहं चउगमएयवड्डमाणजलसंचयं चक्लचंचललुच्चायप्पमालकल्लोललोलंतनायं षड्डुपयवणायचलियनवलपागडनरंगरंगतभंगलाचुन्भमाणसभितनिम्मलुक्कडहम्मीमहमंबंधघावमाणोनियत्नभामुरतराभिरामं महामगरमच्छतिमितिमीगलनिन्द्धतिलितिलियाभिधायकप्परफेणपसरं महानईतुरियंवगममागयभमगंगावत्तगुप्पमाणुचलंतपच्चानियत्नमममाणलोलसलिलं पिछड़ स्त्रीरोयमायर मा.श्यणिकरमोमवयणा १५ ॥ १३ 11.