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(४४) में ४८०००० वाह्य अभियोगिक देवों के कमल है. इस प्रकार से सर्व कमलों की संख्या छेवलयों में एक क्रांड़ वीस लाख पचास हजार एकसो नीम होती है. उनके मध्यमें ऊपर कहे हुवे पद्मद्रह में रहती हुई लक्ष्मी देवी को त्रिगलाराणी ने स्वममें देखी.
विनीय व्यान्यान समासः । तो पुणो सरसकुसुममंदारदामरमाणिज्जभूग्रं चंपगासोगपुन्नागनागपिअंगुसिरीममुग्गरगमल्लिाजाइजूहिग्रंकोल्लकोजकोरिंटपत्तदमणयनवमालिअवउलतिलयवासंतिपउमु प्पलपाडलकुंदाइमुत्तंसहकारसुरभिगंधि अणुवममणोहरेणं गंधेणं दस दिसायो वि वासयंतं सब्बोउअसुरभिकुसुममल्लघवलविलसंतफंतवहुवन्नभत्तिचित्तं छप्ययमहुअरिभमरगणगुमगुमायंतनिलितगुंजंतदेसभागं दामं पिच्छद नहंगणतलायो अोवयंतं ५ ॥ ३७॥
पंचम स्वप्न में त्रिशला देवी ने फूलों की दो माला देखी उन मालाओं में सुगंधी रसवाले फूल थे मंदार ( कल्पवृक्ष ) के फूलों की गुंथी हुई थी चंपा, अशोक, उन्नाव, पीअंगु, शिरसे, मोगरा, मालनीका जाई, जुई, अकोलकोझ, कोग्टि, दमनक, नवमालिका, बकोल, निलक, वसंतिक, पनपत्र, पाटल, कुंद्र, अनिमुक्त, सहकार ( आंत्र ) इत्यादि अनेक जाति के फूलों की सुगंध से अनूप मनोहर गंध से दश दिशाओं मुगंधमय होगई थी और सर्व ऋतु के सुगंधी फल की मालायें जिसमें धवलरंग ज्यादा है ऐसे मनोहर दूसरे भी रंगों से चित्रमय दीखती थी जिसमें छ पैर वाले मधुकर भंवर और भंवरियों गुंजार कर रही थी और माला को नीलेरंग की बना रही थी ऐसी अत्यन्त सुंदर दो मालाओं को त्रिशला देवी ने आकाश में से उतर कर अपनी तरफ आनी हुई देखी.
ससिंच गोखीरफेणदगरयरययकलसपंडुरं सुभं हिअयनयणकंन पडिपुन्नं निमिरनिकरघणगुहिरवितिमिरकर पमाण