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(४२) उरत्थदीपारमालियविरहएण कंठमणिसुत्तएण य कुंडलजुनलुल्लसंतअंसोवसत्तसोभंतसप्पभेणं सोभागुणसमुदएणं आणणकुटुंविएणं कमलामलविसालरमणिज्जलोत्रणं कमलपज्जलंतकरगहियमुक्कतोयं लीलावायकयपक्खएणं सुविसदकसिण घणसरहलंवतकेसत्थं पउमदहकमलवासिणिं सिरिं भगवई पिच्छह हिमवंतसेलसिहरे दिसागइंदोरुपीवरकराभिसिच्चमाणि ४॥ ३६॥
___ लक्ष्मीदवी के अभिषेक का वर्णन । चौथ स्वप्न में त्रिशलाराणी ने लक्ष्मी देवी को देखा वो कैसी है कि पूर्णचंद्रवढना ऊंचे स्थान में रहने वाली मनोहर अंगोपांग वाली प्रशस्य (सुंदर)रुप वाली प्रतिष्टिन सोनका बनाइवा कछुव के समान शोभायमान पर वाली, अति ऊचे पुष्ट मांस से बनेडुत्रे अंगूठे इत्यादि वाली जो ताव के समान लाल और चीकणे नख वाली, कमल के कोमल नये पत्ते के समान सुंदर हाय पग वाली और कोमल अंगुलियों वाली कुरूविंद्र आवर्त भूषण के ममान सुन्दर जांघ वाली मांस में दवगये है घुटने जिसके ऐसीसुंदर, हाथी कीसूड के समान सायल वाली
और मनोहर सोने की बनीहुई मेखला से युक्त विस्तीर्ण कमलबाली उत्तमजाति के अंजन, भंवर, मेग समूह की तरह बहुत काली सरल समान मिलिहुई शोभायमान गुकोमल मृदु रमणीय रोम राजी से युक्त नाभि मंडल वाली सुंदर विशाल प्रशस्त जघन ( नाभि के नीच का भाग ) वाली हथेली में समाजावे एसी सुन्दर तीन सलवाली उदर वाली, और जुदी २ जानि के मणी रत्नों से शोभायमान सोने के ओप वाले सुन्दरता से निमर्ल रक्त सोने के आभरण भूषण से विराजमान अंगोपांग वाली हारसे विराजित और कुंद के फूल की माल से देदीप्यमान है स्तन युगल जो किटोनिमल कलश की तरह शोभायमान है जिसके,
और कंठमणी सूत्र से और शोभागुण समुदाय से युक्त देवी है सूत्र में मरकत (पन्न) से शोभायमान है और मोती के समूह से शोभित है और सुवर्णमोहरों के भूपण से भूपित है (ये भूपण सर्वक्रएट से छानी तक के होते है उनका वणन हैं) कानमें कुंडल देदीप्यमान खंधे पर लटककर मुखकी शोभा बना रहे हैं और नि