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(३) द्वारा करदी गई थी उममें से ज्ञानवृद्धि के लिये जो रकम निकाली थी उम रकम को उनकी भार्या सिग्हकुंचर और उनकी भातृजा सिरह बाई दोनों वाई विधवा मोजद हैं उनकी भाजप लेकर ५०१) रुपये उसमें मढ़ देकर उन सोभागमलजा ने छपवाया है और जो कल्पमृत्र अधिक लाभदायी लोगों को मालम होगा नो उसी द्रव्य से और ग्रन्य भी वे छपवाकर प्रसिद्ध करेंगे. ___ कल्पमूत्र में २४ तीर्थंकरों के चरित्र है नथा बड़े साधू जो गणधर स्थविर नाम से प्रसिद्ध है उनका किंचिन् वर्णन है तथा और भी साधुओं के चरित्र है उनके गुणों को ज नने के लिये और इतिहासिक शोध के लिय यह ग्रन्थ एक अन्युत्तम मायन है. इस ग्रन्य की मूल भाषा मागधी प्रायः २२०० वर्ष की पुराणी हैं. उमकं रचयिता भद्रबाहु स्वामी होने से उनका कुछ वर्णन यहां करदेते है.
पंचम गणधर मुधर्मा स्वामी भगवान महावीर के निर्वाण से १२ वर्ष बाद छमस्त साधु और ८ वर्ष केवल जान पर्याय पालकर १०० वर्ष की उम्र में भगवान महावीर से २० वें वर्ष के बाद मुक्ति गये आज उनको मोक्ष जाने को २४२२ वर्ष हुए है उनके शिष्य जंबू स्वामी महावीर निर्वाण से ६४ वर्ष बाद मुक्ति गंय उस वक्त दश वस्तु का विच्छट हुआ.
१ मनपर्यवज्ञान, २ परमावधिन्नान, ३ पुलाकलब्धि, ४ आहारकलब्धि, ५ अपक, ६ उपशम श्रेणी, ७ जिनकल्प, ८ पिछले नीन चारित्र, केवलज्ञान और १० मुक्ति, और जब जंयूस्वामी के शिष्य प्रभवास्वामी, उनके शिष्य शय्यंभवमरी, उनके यशोभद्र, जिसके संभूनि विजय और भद्रवाह हुए हैं.
भद्रवाह प्रतिष्ठानपुर नगर के रहने वाले थे और उनके भाई वराह मिहिर के साथ उन्होंने दीक्षा ली दोनों शास्त्रन्न होने पर स्थिरता वगैरह भद्रबाहु में अधिक देखकर गुरु ने उनका आचार्य पदवी दी वराह मिहिर नाराज होकर साधुपना छोड़ वाराही संहिता बनाकर ज्योतिष द्वारा लोगों में प्रसिद्ध हुआ गज्य सभा में ज्योनिप की चर्चा में वराह मिहिर भद्रबाहु से हारगया जिससे उपको न्वेद हुआ और परकर व्यंतर देव होकर जनों को दुःख देने लगा जिसमे ययावामीन 'ग्यसगहरंस्तान बनाकर जैनों को दिया सर्वत्र गांति होगई उस भद्रबाहु सापी ने सामान्य साधु को भी अधिक उपकारी होनेवाला कल्प मृत्र बनाया है अर्थात् सिद्धांत समुद्र से ग्ल ममान थोड में सार बताया हैं माधु समाचार्ग चायाम के लिये जा बनाई है वो दंग्वन में मालूम होजावंगा;