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नीति पर चलने वाला और कवि. इतने प्रकार के गुण वाला पुरुष मायः स्वर्ग में से पाया हुवा प्रतीत होता है और इस यौनी को पूरी करके स्वर्ग में जाने वाला है ऐसा शास्त्रों में कहा है. दंभ रहित दयावान दानी इन्द्रियों को दमन करने वाला, चतुर, जिन देव पूनक, जीव मनुष्य यौनी से आया है और फिर मनुष्य यौनी ही प्राप्त करेगा.
मायावी, लोभी, मूर्ख, आलसी, और बहुत आहार करने वाला पुरुष कोई शुभ कर्म के उदय से पशु योनी में से आकर मनुष्य हुवा है और फिर पशु योनी में जावेगा.
अत्यन्तरागी, अतिद्वेषी, अविवेकी, कटू वचन बोलने वाला, मूर्ख और मूरों की संगति करने वाला, प्राणी नर्क से आया है और फिर नर्क में जावेगा.
जिस मनुष्य के नाक, आँख, दांत होठ, हाथ, कान और पैर इत्यादि पूर्ण __ और सुन्दर हैं वो मनुष्य उत्तम गुण प्राप्त कर के योग्य होते हैं इनसे विपरीत __ अर्थात् जिस मनुष्य के अंगोपांग खराब हैं वो अयोग्य हैं. • मजबूत हड्डी से धन प्राप्त होता है, मांस पुष्टि से सुख, गोरी चमड़ी से भोग, सुन्दर आंखों से स्त्री, अच्छी चाल से वाहन प्राप्त होता है, मधुर कंठ वाला श्राज्ञा करने वाला होसक्ता है किंतु यह सर्व सत्व गुणी मनुष्य के लिये है अर्थात् ऊपर लिखे अनुसार उत्तम फल प्राप्त करना अथवा प्रतिकुल यानी खराव को छोड़ना वो सत्व बिना नहीं होता है. ____ मनुष्य के जीवणे भाग पर दक्षिण आवर्त हो तो शुभ है और यदि वाम भाग में उलटा हो तो अशुभ है, इत्यादि अनेक लक्षण शुभाशुभ के शास्त्रों में बताये हैं, परन्तु तीर्थकर देव सर्व से अधिक पुण्य वाले होने से सर्व उत्तमोत्तम लक्षण उनमें होते हैं. लक्षणों का विशेष स्वरूप अन्य टीकाओं से जान लेना.
' व्यञ्जन पसा तिल इत्यादि तीर्थंकरों के योग्य भाग में होते हैं पुरुष जितनी नाप की कुंडी में जल भर के एक युवा पुरुष को उस जल में बिठाया जावे और यदि उस कूडी में से एक द्रोण भर जल बाहिर निकले तो मनुष्य मान ( नाप') वरोबर समझना चाहिये. ___उन्मान से मनुष्य का वजन यदि अर्द्धभार होवे तो उत्तम समझना. उत्तम पुरुष १०८ अंशुल प्रमाण का होता है परन्तु तीर्थकर मस्तक ऊपर शिखर की तरह बारह अंगुल अधिक होने से १२० अंगुल प्रमाण होते हैं.