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सरीरं ' लक्खणवंजणगुणोववेयं माम्माणपमाणपडिपुन्नसुजायसव्वंग सुदरंगं ससिसोमाकारं तं पिदंसणं सुरूवं देवकुमारोवमं दारयं पयाहिसि ॥ ८ ॥
हे स्वामी ! आज मैंने अल्प निद्रां लेते हुवे हस्ती इत्यादि के १४ स्वम देखे, हे स्वामी, हे देवानुमिय, इन स्वप्नों का क्या फल है ? वो कृपया बताइये. ये वचन सुनकर ब्राह्मण ऋषभदत्त मन में बहुत खुश होकर एकाग्रचित्त से अपनी बुद्धि अनुसार शुभ स्वप्नों का फल विचार कर अपनी भार्या देवानंदा से इस प्रकार कहने लगा, कि हे भद्रे ! तुमने प्रति उत्तम कल्याण के करने वाले, मंगलीक धन के देने वाले स्वप्न देखे हैं जिन सब का फल यह है कि नत्र मास और साढ़े सात दिन पूरे होने पर तुम्हारे एक सुकुमाल हाथ पांव वाला पांच इन्द्रिय पूर्ण शरीर में सुलक्षण धारण करने वाला गुणों का भंडार मान उनमान प्रमासे सम्पूर्ण सुन्दर यंग वाला चन्द्र समान मनोहर कांति से प्रिय दर्शन स्वरूप वाला पुत्र रत्न होगा,
* बत्तीस लक्षणों का स्वरूप
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छत्रं तामरसं धनू रथवरो दंभोलि कूम्र्म्मा कुशौ, वापी स्वस्तिक तोरणानि चसरः पंचाननः पादपः; चक्रं शंख गजौ समुद्र कलशौ प्रासाद मत्स्यायवा, यूपः स्तूप कमंडलू न्यवनिभृत् सच्चामरो दर्पण: (१) उक्षा पताका कमलाभिषेकः सुदाम केकी घन पुण्य भाजाम्.
ऊपर के शार्दूलविक्रीडित छंद में और इन्द्र बज्रा बंद के दो पदों में यह बताया है कि यह बत्तीस लक्षण पुण्यवान् पुरुष के होते हैं उनके नाम ये हैं. १ छत्र. २ वींजणा. ३ धनुप. ४ रथ. ५ वज्र. ६ काछुवो. ७ अंकुश ८ वावड़ी. ९ स्वस्तिक. १० तोरण. ११ तालाच. १२ सिंह. १३ वृक्ष. १४ चक्र. १५ शंख. १६ हाथी. १७ समुद्र. १८ कलश. १९ प्रासाद. २० मत्स्य. २१ यव. २२ यज्ञ का 'स्तंभ. ' २३ पादुका. २४ कमंडल. २५ पर्वत, २६ चंवर. २७ काच. २८ वैल. २९ पताका, ३० लक्ष्मी. ३१ माला. ३२ मयूर.
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वत्रीस लक्षण और भी हैं: - ( सात लाल, है ऊंचे, पांच सूक्ष्म, पांच दीर्घ,
तीन विशाल, तीन लघू, तीन गम्भीर ) जिस पुरुष के नाक पांत्र हाथ जीभ डाढ
लाखों के को लाल हों उसे लक्ष्मीवान समझना चाहिये, कांख छाती,