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फसुहु ५ ॥ से तं सुहुमे ? हुमे पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा - उद्दंडे, उक्कलियंडे, पिपीलिथंड, हलिश्रंड, हल्लोहलिअंडे, जे निग्गंथेण वा निग्गंथीए वा जाव पडिले हियव्वे भवइ । से तं अॅडसुहुमे ६॥ से किं तं लेणसुहुमे ? लेपसुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, संजहा- उत्तिंगलेणे, भिंगुले, उज्जुए, तालमूलए, संयुक्कावट्टे नामं पंचमे, जे निग्गथेण वा निग्गंथीए वा जाणियब्वे जाव पडिलेहियव्वे भवइ । से तं लेण सुहुमे ७ ॥ से किं तं सिहसुहुने ? सिंह सुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा उस्सा, हिमए महिया, करए हरतपुए । जे छउमत्थेयं निग्गंथेण वा निग्गथीए वा अभिक्खणं २ जाव पडिलेहियव्वे भवइ । से तं सिणेहसुडुमे ८ ॥ ४५ ॥
पांच रंग के कंथुएं होते हैं वे चलने से ही जीव मालूम होते हैं नहीं तो काले हरे लाल पीले धोले रंग के दीखे तो भी उनमें जीव का ज्ञान नहीं हो सक्ता इसलिये वरतन वस्तु पूंजकर देखकर उपयोग में लेवे जिससे उन जीवों की विराधना न होवे, साधु साध्वी मस्त है इसलिये उनको निरन्तर उपयोग रखकर चारित्र का निर्वाह करना.
गुजरात में जिसको नीलण फुलण बोलते हैं वो जहां पर हवा शरद रहवे वहां पर चोमासा में पांचों वर्ग की पनक ( काई ) होजाती है इसलिये ऐसी जगह पर बहुत यतना से प्रति लेखना प्रर्भाजन कर उन जीवों की साधु साध्वी रक्षा करे क्योंकि जैसे रंग की वस्तु हो वैसीही वो पनक होजाती हैं उसी तरह पांच रंग के बीजे, वनस्पति और पुष्प भी जानने पांच जाति के अंडे माखी वा खटमल के अंडे, मकड़ी के कीड़ी के, छिपकली, किरला ( किरकांडिया ) के अंडे उनकी अच्छी तरह यतना करनी.
पांच प्रकार के वील उत्तिंग (
) के, पानी सूखने से तालाब के बील, मामूली बील, ताडमूल ( उपर से बड़े भीतर से छोटे ) बील, भंवरे के बील उन में जीव होते हैं उनकी यतना करनी.