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मी जान है तो हमें भी उसको छोड़ना चाहिये उन में मभवाजी बड़े ध ५०० चौर या स्त्री और जंबू स्वामी और नव के माता पिता कूल ५२७ नं एक साथ दीक्षा की जय स्वामी तक केवल ज्ञान था अतिम केवली मोक्ष में जाने वाले मंत्र स्वामी हैं.
जंबू स्वामी के शिष्य मथवा स्वामी हुए उनका कात्यायन गोत्र था प्रभवा स्वामी के शिष्य श्रभवमृरि हुए उनका दूसरा नाम मनकपिता था उनका वच्छस गोत्र था.
शय्यंभवजी ब्राह्मण थे एक समय वो यज्ञ करते थे उस समय दो साधुओंन कहा कि यज्ञ का वो इतना कष्ट उठाना है परन्तु तच को जानता नहीं है जिसमे साधुओं के पिछे जाकर उनके गुरु प्रभवा स्वामी से पूछा कि तच्च क्या है ? गुरु ने कहा कि तुझे नंग यज्ञ कराने वाला बनावेगा जिसमें पिया आकर पूछा तो यज्ञ के नीचे गुप्त रखी हुई शांतिनाथ की प्रतिमा का दर्शन कराया जाति स्मरण ज्ञान मकट हुआ जिससे संसार की असारता नजर थाई और सब को छोड़ साधु हुआ और सिद्धांत पढकर आचार्य हुए जो भार्या को छोड़कर आए थे उनको उसी समय पूछा कि तुझे कुछ गर्भ है ! उसने कहा कि मनाक ( थोड़ा दिन का )
पीछे पुत्र हुआ उसका नाम मनाक् ( मनक ) रहगया माता द्वारा सत्य बान जानकर छोटी उम्र में मनक् बालक अपने बाप के पास जाकर साधु हुआ उसकी घोड़ी उम्र (मास) देखकर सिद्धांतों का सार रूप दर्शकालिक सूत्र की रचना कर पढाया आज भी वो सूत्र दरेक साधु की प्रथम पढाया जाता है, अय्यंभवजी के शिष्य तुंगिकायन गोत्र के यशोभद्र शिष्य हुए.
भद्रजी के दो शिष्य हुए संभूति विजय माहर गोत्र के थे, प्राचीन गोत्र के भद्रबाहु स्वामी ये संभूति विजय के शिष्य आर्य स्थूली भद्रजी गौतम गोत्र वाले हुए.
स्थूली भट्टजी नंदराजा के मंत्री शकडाल के बड़े पुत्र थे कला श्रीखने की एक कोड्या नाम की रूपवती गुणिका के घर को १२ वर्ष रहे थे राज्य खट पट से उस मंत्री की मृत्यु हुई और छोटे भाई श्रीयक की प्रेरणा से प्रधान पद देने को राजा ने बुलाये परन्तु रास्ते में संभूति विजय का उपदेश और प्रत्यक्ष वाप की मृत्यु का विचार से साधु होकर छोटे भाई को पदवी दिलाई उनकी मान भगीनिओं ने भी दीक्षा ली गुरुने योग्यता देखकर वोधी कोव्या के घर की स्थूली