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(१४१) एस्स भगवत्रो महावीरस्स जम्मनक्खत्तं संकते ॥ १२८ ॥
जप्पभिई च णं से खुदाए भासरासी महग्गहे दोवाससहस्सठिई समएस्स भगवो महावीरस्स जम्मनक्खत्तं संकंते, तप्पभिई च एं समणाणं निग्गंथाणं निग्गंथाणं य नो उदिए २ पूनासकारे पवत्तइ ॥ १२६ ॥ • जया णं से खुदाए जाव जम्मनक्खत्ताओ विइकते भविस्सइ, तयां णं समणाणं निग्गंथाएं निग्गंथीण य उदिएर पूनासकारे भविस्सइ ॥ १३० ॥
भगवान् के निर्वाण समय क्षुद्रात्मा भस्म राशि नामका बड़ा ग्रह २००० वर्ष की स्थिति का जन्म नक्षत्र में आगया था (ग्रहों का और दिन वगैरह का विशेष वर्णन सुबोधिका टीका से जानना).
वह भस्म राशि ग्रह आजाने से श्रमण निग्रन्थ ( साधु ) और निग्रंथिणी (साध्वी) यों के उदय पूजा सत्कार विशेष नहीं होगा भस्मग्रह दूर होने पर साधु साध्वी की बहु मान्यता होगी। ___जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे कालगए जाव सबदुक्खप्पहीणे, तं रयणिं च णं कुंथू अणुद्धरी नाम समुपन्ना, जाठिया अचलमाणा छउमत्थाणं निग्गंथाणं निग्गं. थीण य नो चक्खुफासं हवामागच्छति, जा अठिा चलमाणा छउमस्थाणं निग्गंथाणं निग्गंधीण य चक्खफासं हव्वमागच्छड् ॥ १३१ ॥ ___जं पासित्ता बहुहिं निग्गंथेहिं निग्गंथीहिं य भत्ताई पञ्चक्खायाहं, किमाहु भंते ? श्रज्जप्पभिई संजमे दुराराहे भविस्सह ॥ १३२ ॥