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व्यक्त दिजका समाधान |
म के पास पांच भूत के संशय वाले व्यक्त जी आए कि प्रभु ने कहा हे भव ! तेरी यह शंका है कि
येन स्वमो पर्म वै सकलं, इत्येष ब्रह्मविधि रंजसा विज्ञेयः ।
अर्थात् सत्र स्त्रमकी तरह सब दिखता है यह ब्रह्म विधि शीघ्र जान लेनी उससे पांच भूतका अभाव है. और पृथ्वी देवता आप: ( जल ) देवता नाम सुनकर पांच भूर्ती का भ्रम होता हैं किंतु स्त्रम समान सत्र दृश्य पदार्थ और पांच भूत बताये है वो सिर्फ अध्यात्मिक दृष्टि से बताये हैं कि उसकी सुंदरता
विरूपता से हर्ष शोक अहंकार दीनता होती है और भूतों में विचार शक्ति चली जाती हैं और जन्म मर्थ होता है वो छुड़ाने को सिर्फ वेद पदों से वोध दिया है कि सुंदरता विरूपता भूतों में है और वो क्षणिक है वा स्त्रम में जो दिखता हैं वो पीछे निष्फल हैं. ऐसे ही यह संसार में सुंदरता विरूपता भी भूतों में दिखती है वो निष्फल है उस में नित्यता का मोह करना अनुचित है. व्यक्त जीने दीक्षा ली. और चौथे गणधर हुए उन के साथ ५०० शिष्यों ने दीचा ली.
सुधर्मा स्वामि का संशय
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जैसा है वैसा ही फिर होता हैं पुरुषों वैपुरुषत्वम श्नुते पशवः पशुत्वं अर्थात् पुरुष मर के पुरुष और पशु मरके पशु होता है इसलिये तेरे को शंका होती है कि जो ऐसा होता तो शृंगालो वैएपजायते यः सपुरीषोदद्यते जो विष्टा को जलाता हैं वह मरके गीदड़ होता है परस्पर विरुद्ध वचनों से शंका होवे तो भी है भद्र ! वेद पढों का परमार्थ समज में नहीं आने से ही शंका होती है
उसका समाधान सुनः
पुरुष अच्छे कृत्य करे तो पुरुष ही होवे और पशु बुरे कृत्य करे तो पशु ही होवे उसमे कुछ आर्य नहीं है और ऐसा एकांत निश्चय नहीं है कि अच्छे कार्य करने वाला वा बुरे कार्य करने वाला दोनों पुरुष होवे ! किन्तु अच्छा कार्य करे और पुरूष होवे वही बताया है जैसे गेहूं बोने से गेहूं ही मिलेगा और