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प्रदेशी राजा की कथा ।
(श्वेताम्बी नगरी में प्रदेशी राजा परलोक प्रत्यक्ष नहीं देखने से पुण्य पाप स्वर्ग नर्क नहीं मानता था और जो कोई जीव भिन्न बनाता तो विचारे मनुष्यों को संदूक में बंद कर मारता था और कहता था कि जीव कहां है। जो जीव होता तो क्यों नहीं दीखता और जीव नहीं है तो फिर पुण्य पाप पीछे को न भोगेगा, इत्यादि प्रश्न द्वारा सब धर्म कृत्य उड़ाकर स्वच्छानुसार चलता था, उसके चित्र सारथी ने दूसरे गांव मे केशी गणधर जो पार्श्वनाथ प्रभु के शिष्प परम्परा में थे, उनका अपूर्व उपदेश से बोध पाकर विनती की कि यदि आप हमारे यहां आवोगे तो हमारा राजा सुधरेगा केशी गणधर भी समय मिलने पर वहां गए और चित्र सारथी ने उद्यान में ठहरा कर राजा को फिरने के बहाने ले जाकर प्रतिबोध कराया केशी गणधर महाराज चार ज्ञान धारक होने से राजा के प्रश्नों का समाधान कर लौकिक दृष्टांत द्वारा लोकोत्तर जीव और पुण्य पाप की सिद्धि की और परम आस्तिक जैनी राजा बनाया उसका विशेष अधिकार राज प्रश्निय (रायपसेणी ) सूत्र उपांग से जान लेना) प्रभु को वहां से सुरभिपुर जाते समय रास्ते में पांच रथों से युक्त नैयक गोत्र वाले राजाओं ने वंदना की.
गङ्गा नदी में उतरते विघ्न ।
भगवान जब सुरभिपुर तरफ आये रास्ते में सिद्धपात्र नाविक की नाव में गंगा नदी उतरने को प्रभु बैठे उस नाव में सोमिल नामके ज्योतिपी ने शकून देखकर कहा कि आज मरणांत कष्ट होगा परन्तु इस ( प्रभु ) महात्मा के पुण्य से बचेंगे वो बात होने बाद जब नाव चली आये रस्ते पानी में सुदृष्ट नामके देवने नाव बुडाने के लिये प्रयास किया क्योंकि वो सुदृष्ट्ट देव पूर्व भवों में जब सिंह था तब त्रिपृष्ट बासुदेव के भव में वीर प्रभु ने उसको मारा था वो वैर याद लाकर जब देव नाव डुबाने लगा तत्र कंवल संवल नाम के दो नागकुमार देवों ने विघ्न दूरकर नाव बचाली.
कंवल संवल देवों की उत्पत्ति ।
* रायपसेणी सूत्र थोड़े समय में दिन्दी भाषान्तर के साथ छपने वाला है विद्याप्रेमी जैन वा जैनंतर इस ग्रंथ के ग्राहक होवें उसकी किंमत प्रायः १ || रहेगी,