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(४) (५) कृति कर्म-यह कल्प नियत है वह साधुओं को छोटे साधु अनुक्रम से वंदन करें २१ तीर्थंकरों के साधु इस तरह बंदन करत इ. साध्वी बड़ी होवे तो भी छोटे साधु को वंदन करे,
(६) व्रत-२४ तीर्थंकरों के साधुओं के व्रत में मुख्य पांच होने पर भी प्रथम अंतिम तीर्थंकरों के साधुओं को पांच व्रत से रात्रि भोजन विरमण व्रत अलग बताया जो हिंसादि टोपों का पोषक है और २२ तीर्थकरों के साधु समयज्ञ होने से जीव रक्षा, सत्य वचन, चारी त्याग, ब्रह्मचर्य, परिग्रह त्याग बह पांच में से स्त्री को परिग्रह रूप मान कर ब्रह्मचर्य को परिग्रह त्याग में मानते हैं इसलिय चार व्रत उनके गिनते हैं.
(७) ज्येष्ठ पद-माध दीक्षा लेने उसको जडवा से दोप होने का संभव होने से दूसरी दीक्षा देते हैं वो दीक्षा से चारित्र का समय गिनते हैं और जिसकी वढी दीक्षा प्रथम हुई वो ही वहा गिना जाता है. ऋयम महावीर के साधुओं को दो दीक्षाएँ होती हैं किन्तु २२ तीर्थकरों के साधुओं को एक ही दीक्षा होती है और वहां से चारित्र समय गिना जाता है.
(८) प्रतिक्रमण कल्म अनियत है-दाप हावे तो २२ तीर्थंकरों के साधु प्रतिक. मण देवसी राई करें अन्यथा नहीं किन्तु ऋपम महावीर के साधुओं को देवसी राई पक्खी चौमासी संवत्सरी प्रतिक्रमण अवश्य करना चाहिये.
(१)माम करव-यपी अनु अगाव मुद 1४ से कार्तिक मुट 1४ तक एक जगह रहे पाठ मास फिरते हैं और एक मास मे विना कारण अधिक न रहें वो मास कल्प २२ तीर्थंकरों के माधुयों को अनियत है चाई दोष लगे तो एक दिन में भी विहार करें दाप न लगे तो वर्षों में भी विहार न करें निर्मल चारित्र पालें.
(10) पर्युषण कन्य-चार माय एक नगा रहकर वर्षा ऋतु निर्वाह करना यह कत्ल प्रनियन है नायकों के माधु वा हो तो व्हर नहीं तो विहार करें प्रथम चार अंतिम तीर्थकर के साधुओं को वर्षों हो चाहे न हो किन्तु रहना ही चाहिये तोमी दुकाल और रोग उपद्रव के कारण विहार करपक्त है. वर्षा के कारण इनास नी एक जगह रहसकते हैं.
यह यय वान साधु माध्चीयों का निर्मल चारित्र रहे और वे निर्मल वतन वाले रहकर लो. गों को धर्म बताकर नमार्ग में चला और मोक्ष मार्ग के श्रीवकारी श्राप बनें दूसरों को बनायें इस हेनु मे कल्य नियत अनियत है दमका विशेष हाल गुरु मुन्व मे जान मत है क्योंकि समयानुसार योग्य फेरफार करने का अधिकार गीतायों को दिया गया है जैसे कि यनि साधु एक होने पर भी इन्य मंग्रही बतियों से माधुयों को मिन्न बताने को पीत वस्त्र धारण करने की मथा मात्र विजय पन्यास के समय से शुरु है ।।