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(१०१) तैयार कराई थी इन्द्र और नंदिवर्धन दोनों मिलकर उस पालवी की शोभा बढावे उसमें पूर्व दिशा सन्मुख महावीर मनु सिंहासन पर आकर बैठे तत्र इन्द्र
और नंदिवर्धन वगैरह मिलकर पालखी को उठाई काई देवता छत्र धरने लगे सधवा स्त्रिएं मंगल गीत गाने लगी भाट चारण जय जय नाद विरुदावलि वोलने लगे सब प्रकार के वाजिंत्र वजने लगे, नाटारंभ होने लगे इन्द्र ध्वजा आगे चलने लगी, देवता आकाश में से फूल वृष्टि करने लगे, उग्रकुल क्षत्रिय कुल के पुरुष सेठ सेनापति, सार्थवाह वगैरह श्रेष्ठ नगरवामी अपनी भक्ति से आगे चलकर जय जय शब्द करने लगे और सब चलते चलते नगर के मध्य भाग में होकर चलने लगे नगरवासिनी स्त्रिये अपना घर कार्य छोड़कर जलसा देखने को श्रागई.
प्रभु की शांत मुद्रा अनुपम रूप अनुपम महिमा अनुग्म तेज अनुपम कांति देखकर स्त्रिय यथायोग्य सत्कार पूजन बहुमान गुणमान करने लगी कोई अपने विशाल नेत्रों से प्रभु की गांत मुद्रा देखने लगी कोई प्रफुल्लित हृदय से मोती से प्रभु को वधाये, नेत्र मुख शरीर सत्र के स्थिर होगये थे कोई स्त्री दोड़ती हुई जाती थी और मुग्धता से घेना गिर जाये तो भी कोई नहीं उठाता था त्रिओं को क्लेश काजल कुंकुंम, वाजिंत्र, जमाई दुधये छः वस्तु प्रिय होने से वाजिंत्र के नाद से ही मुग्ध होकर विचित्र चेष्टाएं करती थी तो भी यहां पर कोई हास्य नहीं करता था सब प्रभु तरफ ही देखते थे.
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जे से हेमंताणं पढमे मासे पढमे पक्खे मग्गसिरबहुले, तस्स णं मग्गसिरवहुलस्त दसमीपखणं पाईणगामिणीए छायाए पोरसीए अभिनिवट्टाए एमाणपत्ताए सुब्बणएणं दिवसेणं विजएणं मुहुत्तेणं चंदप्पमाए सीआए सदेवमणुप्रासुराए परिसाए . समणुगम्ममाणमग्गे संखियचकियनंगलिअमुहमंगलियवद्धमाणयसमाणघंटियगणेहिं, ताहिं इटाहि कंताहिं पियाहिं मणुनाहिं मणामाहिं उरालहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धन्नाहिं मंग