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(८२) ममाहाग, सुपढना, सुप्रबुद्धा, यशोधग, लन्मीवनी, शेपवनी, चित्रगुप्ता, वमुंबग, दक्षिण स्चक से श्राकर नमस्कार कर म्नान कगने को जल में भरा हुया कलश लेकर गीत गान करने लगी. ___ इला देवी, मुनदेवी, पृथ्वी, पद्मायनी, एकनामा, नत्रमिका, भद्रा, मीना, पश्चिम रुचक्रम प्राकर नमस्कार कर हाय में पंवा कर पवन डालने को बड़ी रहकर गीन गान करने को लगी. __ अलंकुशा मिनकशी, पुंडनिका. वामणी, बामा, मर्व प्रमा, श्री, ही आठ उत्तर रुचकसे आकर नमस्कार कर चामर विजन लगी चित्रा, चित्रकग. गतरा, वमुदामिनी यह चार विडिक रुचकम आकर हाथों दीपक लकर खड़ी रही, और रुचक हैप से रूपा. स्यामिका, सुना, ल्यवनी, चार देवीएं आकर चार आंगुल रखकर बाकी की नाल के कर नजदीक में गडा बोडकर उसमे डाल कर वैर्य ग्न्न का चीनरा बना लिया और द्रोड से बांध लिया, जन्म गृह में पूर्व दक्षिण, उत्तर तीन दिशा में नीन कल के गृह बनाकर दक्षिण के घर में माना पुत्र दोनों को नेल से मालिस (मर्दन ) किया पूर्वक घर में लजाकर स्नान कराया, और कांड आभूषण पहाय, उत्तर के घर में लेजाकर अरणी के काष्ट मे अग्नि जलाकर चंदन का होमकर रक्षा बनाकर पोटली बांध दी और मणि ग्न्न के दो गोल टकराकर कहा कि हे वीर आप पर्वत जितन आयु वाले हो इस नाह मूनिका कर्मकर माना पुत्र को उनके घरमें रखकर नमस्कार कर अपने स्थानों में चली गई.
दरक देवी का परिवार चार हजार मामानिक देव, चार महत्तरा, १६हजार आ रनक, सात जानि की सेना और सनापनि, और दुसरं भी रिद्धि वाले देव गाय होते है और अभियोगिक वॉ ने बनाया हुया एक यांजन के विमान में बैठकर आये थे और चले गये.
६४-इन्द्रों का महोत्सव. इन्द्रों का प्रामन कंपने से वे जानते हैं और प्रथम देवलोक में हरिनगमपि देव इन्द्र महाराज के कईन से मुघोपा पंग वनाव जितसे ३२ लाख विमान के घंट वजन पर मब तैयार होकर इन्द्र के पास आकर खड़े हुए और पालकदव ने