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* शांतिनाथ जिनपूजा *
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८४ शांतिनाथ जिन पूजा ।
या भवकाननमें चतुरानन, पापपनानन घेरि हमेरी। आतमजान न मान न ठान न, बान न होन दई सठ मेरो ॥ तामद भानन आपहि हो, यह छान न आन न आननटेरी। आन गही शरनागतको अब श्रीपतजी पत राबहु मेरी। ओं ह्रीं श्रीशांतिनाथ जिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर । संवौषट ।।
हिमगिरिगतगंगा-धार अभंगा, प्रासुक संगा भरि भृगा। जरमरनमृतंगा, नाशि अधंगा, पूजि पदंगा मृदुहिंगा॥ श्रीशांतिजिनेशंनुत शक्र शं वृष चक्र शं चक्र शं चक्र शं । हनि अरि चक्र शं हे गुनधेशः दयामृतेशं मक्रशं ॥ १॥ पर बावनचंदन, कदलीनंदन, घन आनंदन सहित घलों। भवताप निकन्दन, एरा नन्दन, बंदि अमंदन, वरनवसों ॥ श्री० ॥२॥ ओं ह्रीं श्रीशांतिनायजिने. न्द्राय भवतापविनाशनाय चंदनं : हिमकरकरि लजत, मलयसुसजत, अच्छतजजत, भरिथारी। दुखदारिद गजत, सदपदसजत, भवभय भजन, अतिभारी ॥ श्रो० ॥ ३ ॥ ओं ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्रामये अक्षतं ॥ मंदार सरोजं, कदली जोज, पुंज भरोज, मलयभरं भरि कंचनथारी, तुम ढिग धारी, मदनविदारी, धोरधरं ॥ श्रो० ॥ ४ ॥ओं ह्रीं श्रोशांतिनाथजिनेन्द्राय कामवाण विध्वंसनाय पुष्पं ॥ पकवान नवीने, पावन कीने, षटर. सभोने, सुखदाई । मनमोदनहारे, छधा विहारे, आगे धारे गुनगाई ॥ श्रो० ॥ ५॥ ओं ह्रीं श्रोशान्तिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्य ॥ तुम ज्ञानप्रकाशे, भ्रमतम नाशे, शेयविकाशे